Sunday, September 27, 2020

कोरोना की आयुर्वेद औषधियों का सेवन डॉक्टर की सलाह के बाद ही ले

 कोरोना की आयुर्वेद औषधियों का सेवन डॉक्टर की सलाह के बाद करे । Self Medication से आपको तकलीफ हो सकती है :

              कोरोना इन्फ़ैकशन को फैले हुए करीब करीब 8-9 महीने अब भारत मे होने आए है । COVID:19 इन्फ़ैकशन की वजह से पूरा विश्व एकजूट होकर लड़ रहा है । कई जगह कुछ कुछ काबू मे आया हुआ कोरोना , बहोत सारी जगह पर बेकाबू भी बन गया है । आयदिन नए नए हॉट स्पॉट बन रहे हैं । social media मे अब RIP सुनने पर दिल एक धड़कन चूक जाता है की अब किसके अपमृत्यु का समाचार सुनना पड़ेगा । चारो और एक डर का माहोल बन गया है । एक छुपे हुए डर के नीचे हरकोइ जी रहा है । साथ ही जीवन निर्वाह चलाने के लिए, अपने काम को लेकर लोग बाहर भी निकल रहे हैं । कुछ लोग बेखौफ होकर घूम रहे है तो कुछ लोग डर के मारे घर का आँगन भी नहीं देखते है ।

Covid19


              आयुर्वेद के द्वारा covid19 संक्रामण किस तरह काबू मे आ सके उसके लिए बहोत सारे उपाय शुरू से विशेषज्ञों ने बताए हैं । आयुष डिपार्टमेंट द्वारा भी यह चिकित्सा के निर्देशों का किस तरह पालन किया जाए उसके लिए मार्गदर्शिका भी जारी की गई है । आयुर्वेद से रोगप्रतिकरक शक्ति बढ़ाने पर कोरोना से बचा जा सकता है यह बात सामने आने पर के साथ ही social media से लेकर print media तक सब जगह आयुर्वेद के अलग अलग चिकित्सा और नुसख़ों का ज़ोर शोर से प्रचार हुआ है । इन दिनों मे आयुर्वेद के प्रति लोगों की श्रद्धा ओर ज्यादा प्रबल हुई है । बतौर आयुर्वेद चिकित्सक मैंने यह महसूस किया की ज्यादा से ज्यादा लोग आयुर्वेद के विभिन्न नुस्खे और चिकित्सा इन दिनों मे अपनाने लगे है ।  

              लेकिन डर एक ऐसी बात है जो हमे कोई भी हद तक जाने के लिए मजबूर कर देती है । और उसमे भी किसी virus से संक्रमित होकर उससे अप्राकृतिक मृत्यु पाना या अपने किसी नजदीकी स्वजन को गंवाना इस बात से भयावह और डरावना और क्या हो सकता है ? यही डर की वजह से लोगो ने आयुर्वेद के विभिन्न उपचारों को घर पर अपनाना शुरू कर दिया । अपनाने तक तो अच्छा ही था, लेकिन एक हद से ज्यादा ही उसका प्रयोग आजकल हो रहा है यह मालूम पड रहा है । social media पर तो हर कोई जैसे आयुर्वेद का डॉक्टर बन कर बैठा है । सभी लोग कही सुने – पढे हुए भिन्न भिन्न आयुर्वेद नुस्खों को फॉरवर्ड कराते हुए इनबॉक्स को भर दे रहे है ।

Ayurveda Medicine


              लोग कहेते-मानते है की आयुर्वेद दवाइया खाने से उनकी side effects नहीं होती है । मैंने मेरे Facebook Page पर और हमारी वैबसाइट पर और न जाने कितनी ही जगह पर यह बात की होगी की साइड इफैक्ट का आधार दवाइयोंको आप कैसे ले रहे हो इस पर रहेता है । आयुर्वेद की औषधियों का भी साइड इफैक्ट होता है अगर वो उसकी योगी मात्रा से ज्यादा या कम ली जाए या किसी qualified डॉक्टर से परामर्शके  बगैर ली जाए ।

              COVID19 के चलते लोक डाउन लगा और उसके बाद unlock के new normal के वातावरण मे एक नयी दिनचर्या लोगोने अपनाई । अब कोरोना के इन्फ़ैकशन से बचने के लिए लोगो ने ज्यादा से ज्यादा नुस्खो और उपचारों को अपनाना चालू किया ।

Ayush Kwath


              रोगप्रतीकारक शक्ति को बढ़ाने की मानो एक दौड़ ही शुरू हुई है । हल्दी, कालीमिर्च , तुलसी जैसी गर्म चिज़े इन्फ़ैकशन को काबू मे लाकर सर्दी कफ आदि को काबू मे कर सकती है ऐसा मार्गदर्शिका मे कहा गया था । इसके लिए लोग रसोई घर मे ही मिलने वाले काली मिर्च, अदरक – शुंठ चूर्ण, तुलसी आदि को लेने लगे हैं  । इसके चलते सभी गरम-तेज मसलों को उबालकर या खाने मे लेने के अलग अलग नुस्खे प्रचलित हो गए । लोगो ने यह एकदम ही गर्म गुणवाले औषधोंका सेवन खुद की प्रकृति समजे बिना ही चालू कर दिया । दिन मे दो – तीन बार यह गरम चीज़ें हररोज – महीनों तक बेहिसाब लेते रहेने से एसिडिटि , कोलयटिस , पेट का दर्द , सिरदर्द, उल्टी होना, बालों का जड़ना, त्वचा विकार जैसी कई सारी समस्या अब सामने आने लगी हैं । सौंठ के पाउडर को सूंघना और उसको मुंह मे रखकर खाने के नुस्खे से कई लोगों को चक्कर आना, सिरदर्द होना आदि दिक्कते भी होने लगी हैं । ज्यादा गरम चीजों के सेवन से कई महिलाओ को मासिकधर्म से जुड़ी समस्या ज्यादा बढ़ गई हुई भी हमारी OPD मे दिखाई दे रही है । हल्दी ने तो मानो सारे रिकॉर्ड ही ब्रेक कर दिये है । सारे साल मे हम जितनी हल्दी नई खाते हैं उससे चार  – पाँच गुनी ज्यादा हल्दी हम इन चंद महीनों मे खा गए हैं । और अभी भी उसकी डिमांड बरकरार है । थोड़े ही दिनों मे हल्दी का कालाबाज़ार न हो तो ही गरिमत है ।

Turmeric Milk


              हल्दी हो या तुलसी हो या सोंठ हो या और कोई वनस्पति तब ही औषधीय गुण देगी जब उसे कोई आयुर्वेद के जानकार qualified doctor द्वारा कही जाए ।  जब वो कोई डिग्रीधरक आयुर्वेदिक वैद्य द्वारा निर्देश की जाए तो उसके पीछे का logic सामान्य से काफी अलग रेहता है । हर किसी को गर्म औषधी समान रूप से गुण नहीं देती है  । औषधियों की मात्रा व्यक्ति की उम्र, वातावरण, प्रकृति , स्त्री-पुरुष आदि factors को ध्यान मे रखते हुए निर्देशित की जाती है । Social Media पर कहे सारे नुस्खे सही ढंग से सूचित किए है या नहीं यह भी कभी जानने की कोशिश ही नहीं की है  । उनकी प्रामाणिकता जाने बिना ही लोगोने वे नुस्खे अपना लिए । कुछ लोगो ने  तो मानो की पेट मे आगा ही लगा दी है । गर्म चिज़े इन्फ़ैकशन को काबू मे ला सकती है , लेकिन उनकी मात्रा हर एक के शरीर के हिसाब से अलग अलग होगी ना ! और फिर बिना परामर्श लिए उनको अपनाने से आए विपरीत परिणामो से परेशान होकर लोगो ने आयुर्वेद को कोसना चालू किया । इच्छित परिणाम नहीं मिलने की वजह से उनका आयुर्वेद के प्रति विश्वास डगमगाने लगा ।

गलत तरीके से औषधि लेने पर तकलीफ 


              सही कहूँ तो, लोगो को हजारो सालो से शाश्वत, सपूर्ण  विकसित और परिपूर्ण ऐसे आयुर्वेद विज्ञान पर भरोसा नहीं है । आयुर्वेद को अपनाने के पीछे उनकी श्र्द्धा और डर से कही आगे है उनका “blindly follow” करने की आदत ! आयुर्वेद का नाम आते ही आंखे बंद करके उन्हे लोग अपनाने लगते है । आजकल तो हर कोई तीसरा आदमी बिना किसी अनुभव लिए social media पर डॉक्टर बन बैठा है, वे आयदिन नए नए नुस्खे और उपचार आयुर्वेद के नाम पर लोगो पर थोप रहे हैं ।  लोगो को आयुर्वेद उपचारो से ठीक होना है , किन्तु उसके लिए  social media मे viral हो रहे आयुर्वेद के नुस्खे ही अपनाने है । आयुर्वेद के डॉक्टर को परामर्श की फीस ना देनी पड़े उसके चक्कर मे लोगो ने अपने आप दवाइयाँ लेना शुरू कर दिया है । उनको अपने स्वास्थ्य के लिए प्रकृति का परीक्षण करवाके आयुर्वेद के डॉक्टर से परामर्श लेकर आयुर्वेद की औषधी खाने मे interest नहीं है । आजकल तो कुछ रुग्ण ऐसे भी हैं की जो सिर्फ डॉक्टर से सलाह लेने लिए या किसी बीमारी के सुजाव के लिए फोन पर या whatsapp पर मेसेज से बात करते है, बस बाकी का काम तो अभी भी मेडिकल स्टोर से ही हो जाता है ।

              काफी मेडिकल स्टोर वालों ने भी मौके का फाइदा उठाकर आयुर्वेद दवाइयाँ लोगों को बेचे जा रहे हैं और उसकी मनचाहे dose भी अपने आप बता दे रहे है । औषधि अगर उसकी मात्रा से ली जाए तब ही तो अपना सही असर दिखाएगी । जो चीजों की आदत शरीर को इतने समय तक बिलकुल नहीं थी उनकी अचानक से बहोत सारी मात्रा शरीर मे जाएगी तो भी  शरीर उसको  कैसे adjust कर पाएगा । वो औषध चाहे कितनी भी अच्छी हो उसका प्रयोग धीरे धीरे समजदारी से – सलाह लेकर करना ही जरूरी है ।

Yoga


              वैसी ही बात योग- प्राणायाम और कसरत के बारे मे हुई है । योग यह आयुर्वेद का अभिन्न अंग है । आजकल तो टीवी पर / social media पर कितने सारे योगगुरु बन बैठे है और खुदकी भिन्न भिन्न योग की पद्धतियाँ बना कर chocolate की तरह बेच रहे है । और उनके शिष्य  भी उनसे अभिभूत होकर हजारो रुपए देकर उन्हे follow भी कर रहे हैं । वैसे योग तो एक विज्ञान है, उसकी पद्धति और मुख्य विचारधारा एक ही है, फिर उसकी अलग अलग पद्धतियाँ कैसे अस्तित्व मे आ गयी ये तो एक डिबेट का विषय रहेगा । लेकिन यह बात का मैं खुद साक्षी हूँ की, इतने समय तक सरल ढंग से किए जाने वाले योग क्रिया को बार बार गला फाड़ कर कहे जाने पर भी काफी रुग्ण ने योग प्राणायाम कतह ही नहीं अपनाए है । और अब अचानक उनका अतियोग होने लगा है । कोई भी कसरत या योग को करने से पहेले शूक्ष्म क्रिया करनी पड़ती है । कसरत और योग-प्राणायाम को अपनाने की एक सही विधि और नियम होते हैं ।  शरीर के स्नायु जो अभी तक कभी भी योग का “य” भी नहीं देखा है उन्हे अचानक से दिन के 1-2 घंटे कसरत करवाने से क्या नतीजा आयेगा ? वैसे भी सभी योग या प्राणायाम या कसरत सभी के लिए नहीं बने है । यहा तो हररोज कौन किस से ज्यादा संख्या मे योग कर पायेगा इसकी स्पर्धा हो रही है । लेकिन इसके नियमों को जाने बिना ही बेढंग योग या कसरत या प्राणायाम करने से उन्हे काफी परेशानियाँ भी दिख रहीं है । और नतीजो का दोष दिया जाता है पूरे system को !



              कई बार तो ऐसा भी हुआ है की जब इस तरह से गलत तरीके या गलत नुस्खों को ना अपनाने का अनुरोध हम आयुर्वेद डॉक्टर द्वरा किया गया तो लोगो ने उल्टा डॉक्टर को ही दोषित ठहराया है । और कहा की, शायद डॉक्टर ज्यादा महेंगी दवाई देना चाहते है इसलिए वो हमारे नुस्खों और औषधियों का विरोध कर रहे है ....!

              खुद की नासमजी के कारण अपनाए हुए नुस्खो से मिले विपरित  परिणाम से आयुर्वेद विज्ञान कतह ही खराब या बिन-असरदार नहीं हो जाता है । यह वो व्यक्ति की गैरजिम्मेदारी थी जिससे उसे हानी हुई है । इसमे पूरी system खराब नहीं होती है ये खास समज़े ।

Ayurveda Medcine


             आईए कुछ खास बातों का ध्यान रखें:


· हमेशा योग्य आयुर्वेद चिकित्सकों से सलाह लेनी चाहिए। अपनी  हररोज की समस्या के लिए उनसे सलाह लें।

· आयुर्वेद फिजिशियन आपका फैमिली फिजिशियन हो सकता है। आपकी छोटी मोटी दिक्कतों के लिए उनसे मशवरा लें।

· आयुर्वेद विशेषज्ञों की राय के बिना सोशल मीडिया के किसी भी उपाय का पालन न करें।

· आयुर्वेद डॉक्टरों  की सलाह और प्रेस्क्रिप्शन के बाद ही कोई दवा लेनी होगी।

· आयुर्वेद की दवाओं के साइड इफेक्ट्स होते हैं, अतः ख़ुद से जाकर मेडिकल स्टोर से दवाई लेकर स्व-चिकित्सा करना बंद करें।

· घरेलू उपचार आयुर्वेद का हिस्सा हैं, यह कुछ हद तक आपकी राहत दे सकता है लेकिन वे पूर्ण रूप से आयुर्वेद उपचार नहीं हैं। सम्पूर्ण आयुर्वेद चिकित्सा के लिए आयुर्वेद विशेषज्ञ से ही औषध ले।

· आपके शरीर की प्रकृति को जाने बिना किसी भी घरेलू उपचार का सेवन न करें।

· मेडिकल स्टोर्स से सीधे दवाइयाँ खरीदना आपको स्वास्थ्य संकट में डाल सकता है।

· योग और व्यायाम दैनिक दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। लेकिन प्रारंभिक चरण में, विशेषज्ञों की सलाह से ही इसे करना चाहिए।

· किसी भी योग आसन या एक्सर्साइज़ को उसके नियम और व्यक्ति की शरीर की आवश्यकता और प्रकृति के अनुसार किया जाना चाहिए।

· आयुर्वेद एक विशाल विज्ञान है। अगर किसी को मनोवांछित परिणाम नहीं मिला है तो उसका मतलब यह नहीं है कि संपूर्ण विज्ञान अच्छा नहीं है। एक दूसरी राय भी लेनी चाहिए।

· ऐसी कोई एक ही "जादुई जड़ी बूटी या उपाय" दुनिया में नहीं है। आयुर्वेद विशेषज्ञों की सलाह के बिना अत्यधिक खुराक में एक विशेष दवा का सेवन न करें।

              गहेने बनाए के लिए क्या आप लुहार के पास कभी गए हो ? गहेने बनाए के लिए तो हम सुनार के पास ही जाते हैं  ना ! फिर हमारे अमूल्य स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए ज्यों त्यों नुस्खे अपनकर क्यूँ गलत दिशा पकड़ रहे हैं ? सही दिशा का चयन करे, आप जरूर से अपनी मंज़िल को पाएंगे ।

              Master Stroke: If your doctor prescribe you medication without first asking about your diet, sleep – exercise routine, water consumption, whether you have any structural issue or stress in life,,,,Then you  haven’t got a doctor. What you have is drug dealer …!


To read this article in English pls visit :

https://www.thelitthings.com/2020/09/seek-advice-of-ayurveda-experts-for.html

Saturday, September 19, 2020

दहीं का आयुर्वेदीय महत्व और दुष्प्रभाव

Health Benefits Of Curd, Uses And Its Side Effects

दहीं और उसका महत्व

                दहीं यह सबको प्यारा होता है । बच्चों से लेकर बड़ों तक दहीं की लोकप्रियता बहोत बड़ी है । शायद एसा कोई ही होगा जिसे दहीं अच्छी लगती ना हो । दहीं की वजह से भोजन के स्वाद की बढोती होती है जिससे हर बड़े और बच्चे का लगाव दहीं की तरफ खास जुका हुआ होता है ।

                भारत के सभी प्रांतो मे दहीं का उपयोग कीसी न कीसी तरहा से किया जाता है। भारत मे तो दहीं और शक्कर किसी शुभ कार्य की शुरुआत में शुगून के तौर पर खाया जाता है, विद्यार्थियों को उनकी परीक्षा देने से पहेले भी दहीं और शक्कर दिया जाने का एक रिवाज है ।



क्यों दहीं और शक्कर शुभ कार्य के पहेले खाया जाता है ?

                घर से बाहर जाते वक़्त या शुभ कार्ये से पहेले दहीं शक्कर खाने का भारतीय रिवाज सालों से प्रचलित है । कुछ लोग मानते हैं की दहीं शक्कर खाने से यह सकारात्मक बल बढ़ता है और नकारात्मक बातों को शरीर और मन से दूर रखता है ।  लेकिन यह दहि शक्कर के रिवाज के पीछे एक वैज्ञानिक अभिगम भी है यह बहोत कुछ लोग ही जानते होंगे, और इसलिए वे इसे अंधश्रद्धा समजकर दहीं शक्कर को नहीं खाते है  

                दही आपके शरीर के लिए प्राकृतिक शीतलता देने का काम करता है, जो गर्मी से लड़ने में मदद करता है। आपको यह अच्छे से पता होगा की , चीनी / मिश्री  यह  ग्लूकोज का एक आवश्यक स्रोत है, जिससे आपके शररी के कोषों को ऊर्जा मिलती है । जब आप दहीं और शक्कर एक साथ लेते हैं, तो इसका आपके शरीर पर जादुई असर होता है। यह आपकी चिंता दूर करके आपको ठंडा और सराबोर करता है, आपको ऊर्जा की एक त्वरित खुराक देता है । इसलिए यह खाने से आप खुद को ऊर्जावान और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं ! यही कारण है कि दहीं चीनी छात्रोंको भी दिया जाता है जो परीक्षा दे रहे हैं। किसी भी परीक्षा या तनावपूर्ण घटना के दौरान हम आहार और पोषण के बारे मे ध्यान नहीं रखते हैं । ऐसे समय में, दही-चीनी कार्य को करने के लिए आवश्यक ऊर्जा के साथ शरीर को ईंधन देता है और पोषण का ध्यान रखता है। तो अब आप जान गए होंगे की दहीं शक्कर के पीछे का वैज्ञानिक तथ्य क्या है । अब जब कोई आपको दहीं शक्कर खाने के लिए दे तो मना मत करना !

दहीं को कैसे जमाये :

                दहीं को जमाने की लिए दूध का शुद्ध होना जरूरी है । जितना ज्यादा पानी दूध मे रहेगा उतना ही दहि अच्छे से नहीं जमेगा । दूध को जमाने से पहेले एकबार उसे  अच्छे से गर्म जरूर से कर लें । मिट्टी के पात्र मे जमाया हुआ दहीं बहोत अच्छा जमता है । जमते वक़्त दूध ज्यादा गर्म या ज्यादा ठंडा नहीं होना चाहिए । दूध मे जामन ( थोड़ा सा दहीं ) अच्छी तरह से घोलकर ले ।  ठंडे मौसम मे दहीं जल्दी नहीं जमता है, इसलिए दूध मे ज्यादा जामन (दहीं ) डाले। दो रात्री से अधिक जमाया हुआ दहि खट्टा बन जाता है । याद रखें के फिटकरी / नींबू या कोई खट्टी चीजों को डालकर जमाया हुआ दहीं खट्टा बनता है और सेहत के लिए नुकसान देय भी होता है ।

                गाय के दूध से बना दहीं पचने मे आसान होता है  और भैंस के दूध से बना हुआ दहीं लंबे समय के बाद पचता है और कफ को बढ़ता है ।

दहीं के गुण क्या होते हैं :

                आयुर्वेद के प्राचीनतम ग्रंथ चरक संहिता मे दहीं के गुणों का वर्णन इस तरह से पाया जाता है :

रोचनं दीपनं वृष्यं स्नेहनं बलवर्धनम्।

पाकेऽम्लमुष्णं वातघ्नं मंगल्यं बृंहणं दधि । । २२५। ।

शरद्ग्रीष्मवसन्तेषु प्रायशो दधि गर्हितम्। -चरक संहिता सूत्रस्थान 27

        अच्छी तरह से जमी हुई दहि भोजन मे रुचि उत्पन्न करती है । दहीं पाचन शक्ति को जगाने वाली और वीर्यवर्धक होती है । यह पचने के बाद खट्टी बनती है और उसके गुणधर्म गर्म होते है । दहीं वायु दोष का नाश करने वाली, मंगलकारी और स्थूलता प्रदान कारक होती है । शरद, ग्रीष्म और वसंत ऋतु मे दहीं पीना वर्ज्य होता है ।

दही या दूध के जीवाणु किण्वन ( fermentation ) द्वारा बनाया जाता है। दही बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले बैक्टीरिया को "curd culture " कहा जाता है, जो दूध में पाए जाने वाले प्राकृतिक शर्करा के रूप में होता है। यह किण्वन ( fermentation ) प्रक्रिया लैक्टिक एसिड का उत्पादन करती है, एक ऐसा पदार्थ जो दूध प्रोटीन को रूखा बनाता है, जिससे दही को इसका अनूठा स्वाद और बनावट मिल जाता है।

दहीं के TOP5 फायदे :

1.    महत्वपूर्ण पोषक तत्व : दही में लगभग हर पोषक तत्व होता है जिसकी आपके शरीर को जरूरत होती है। यह बहुत सारे बी विटामिन - विशेष रूप से विटामिन बी 12 और राइबोफ्लेविन, दोनों के लिए जाना जाता है । फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, पोटेशियम कैल्शियम आदि आवश्यक खनिज भरपूर मात्र मे दहीं पाये जाते हैं । बस एक कप दहीं आपके दैनिक कैल्शियम की जरूरत का 49% प्रदान करता है।

2.    नेचरल प्रोटीन : दही प्रोटीन की एक प्रभावशाली मात्रा प्रदान करता है, जिससे हमारे शरीर की बहोत सारी मुख्य क्रियाने सही ढंग से हो पाती हैं ।

3.    पाचक क्रिया : दहि पाचनक्रिया मे सहायक रहेता है । पेट की सूजन या पतले दस्त होने पर दहीं को जायफल या भुने हुए जीरे के साथ लेने का आयुर्वेदिक उपचार भारत मे काफी दशको से प्रचलित है ।

एक रिसर्च के मुताबिक दही में जीवित बैक्टीरिया, या प्रोबायोटिक्स होते हैं । जिनके सेवन करने पर ये पाचन स्वास्थ्य को लाभ पहुंचा सकते हैं । दुर्भाग्य से, बाज़ार मे मिलते काफी सारे दहि प्रोडक्टस को पास्चुरीकृत किया जाता है, जो एक गर्मी का उपचार है जिनसे  लाभकारी जीवाणु - प्रोबायोटिक्स  मर जाते है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपके दही में प्रभावी प्रोबायोटिक्स शामिल हैं आपको दहीं के लेबल पर सूचीबद्ध की माहिती को सही तरह से पढ़ना होगा । अगर उनमे प्रोबायोटिक्स मौजूद रहेंगे तो वो निश्चित ही पेक पर लिखा होगा ।

4.    हड्डियों और ह्रदय के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी : दहीं vitaD से भरपूर होने की वजह से हड्डियों को स्वस्थ रखने के लिए फायदेमंद होता है । एक रिसर्च के मुताबिक दहीं के नियमित सेवन से ह्रदय की धमनियों मे वसा बढ़ती नहीं है । इसलिए उच्च रक्तचाप और कॉलेस्ट्रोल से संबन्धित बीमारियों से दूर रहा जा सकता है ।

5.    त्वचा और बालों के लिए उपयोगी : दहीं मे मौजूद कई सारे खनिज तत्व और vitamins की वजह से त्वचा और बालों पर लगाने से उन्हे पोषण देता है । बालों और त्वचा को योग्य मात्र मेन नमी प्रदान कर उन्हे तरोताजा बनाता है । बालों मे रूसी दूर करने के लिए और त्वचा से जुरियाँ निकलने के लिए दहीं का उपयोग हर घर मे सालों से किओया जाता है ।



दहीं का पानी :

            आयुर्वेद के अनुसार दहीं का पानी पचने मे हल्का होता है । इससे पाचन शक्ति अच्छी बनती है और कब्ज दूर होती है । अच्छी तरह से जमी हुई दहीं का ही पानी सेवन करना चाहिए ।

 

दहीं खाते समय यह खास ध्यान रखें :

    दहीं फायदेमंद खुराक जरूर है , लेकिन सभी को यह शायद फायदा ना भी दे सके । आयुर्वेद के अनुसार दहीं खाने के कुछ नियम हैं । अगर इन नियमों के अलावा दहीं खाया गया तो कहीं न कहीं यह दुष्प्रभाव भी दिखा सकता है । आइये जानते हैं की दहीं को कैसे खाया जाए और दहीं से क्या क्या दुष्प्रभाव देखने मिलते है :

·      दहीं आयुर्वेद के अनुसार रात मे नहीं खा सकते है ।

·      शरद, गरमी और वसंत ऋतु मे दहीं पीना मना है ।

·      दहीं जब भी खानी हो तब उसके साथ शक्कर, मिश्री, नमक, मूंग दाल या काली मिर्च डालकर ही लेने से दहीं के खराब गुण शरीर को नहीं मिलेंगे ।

·      दहीं को गरम कर के कभी भी नहीं खाना चाहिए। बाहर धूप से आकार तुरंत दहीं का सेवन भी नहीं करना उचित होगा।

·      जिनकी पाचक क्षमता कमजोर है उन्हे दहीं पचाने मे भरी पड सकता है । ऐसे समय पर कम मात्र मे और काली मिर्च डालकर दहीं खाना उत्तम होगा ।

·      आधा जमा हुआ – कच्चे दहीं का सेवन कदापि न करें । आयुर्वेद के अनुसार आधा जमा हुआ दहीं त्रिदोष को असंतुलित कर रोग पैदा करता है ।

·      दहि अगर खट्टा हुआ तो वो एसिडिटि, त्वचा विकार और हड्डियों मे दर्द भी पैदा कर सकता है ।

·      एक संशोधन के अनुसार हररोज दहीं खाने वाले व्यक्तियों मे मोटापा और उससे होने वाली बीमारयो की परेशानी ज्यादा देखने मिलती है ।

·      जिन महिलाओं को माहवारी संबंधित विकार हो उन्हे आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह से दहीं खाना बंद करना चाहिए ।

·      ऊपर बताए दहीं के लाभ सभी लोगो को एक समान लागू नहीं होते हैं । दहीं ह्रदय रोग , त्वचा विकार या जुकाम आदि रोगों मे फायदेमंद नहीं भी हो सकता है । कुछ लोगो मेँ दहीं से ह्रदय की – कफ की और त्वचा संबंधित बीमारियाँ बढ़ जाती है । इसलिए आयुर्वेद डॉक्टर की सलाह से अपनी प्रकृति – Body Constitute जानकार ही दहीं का चिकित्सा की तरह उपयोग करना उचित होगा ।


To read this article in English : https://www.thelitthings.com/2020/09/health-benefits-side-effects-curd-dahi.html 


- डॉ. जिगर गोर ( आयुर्वेद विशेषज्ञ ) 

श्री माधव स्मरणम आयुर्वेद चिकित्सालय

Friday, September 11, 2020

Psychological Immunity : The Key of Happy Life

Psychological Immunity

Your Psychological Health is the Key of Happy Life!

                जन्म से ही रोगप्रतिकारक शक्ति का बल हमारे स्वास्थ्य और विकास के मापदंड तय करता है । स्वस्थ शरीर और योग्य शारीरिक विकासके लिए अच्छी रोगप्रतिकारक शक्ति का होना अनिवार्य है । अगर कोई व्यक्तिकी रोगप्रतिकारक शक्ति कम हो तो उसके व्यक्तिगत विकासके parameters achieve नहीं हो पाते है, परिणाम स्वरूप छोटे मोटे कारण की वजह से वो बार बार बीमार पड़ता रहेता है। और जिसके शारीरिक बल की मात्रा अच्छी होगी वो अच्छीखासी रोगप्रतीकारक शक्ति का आसामी होने की वजह से बीमार नहीं पड़ेगा और उसका व्यक्तिगत विकास शारीरिक स्तर पर अच्छा हो पाएगा ।

                बचपन से लेकर बड़े होने तक रोगप्रतिकारक शक्ति का बल हमे विभिन्न रोग और बीमारियों से बचाता रहेता है । मानो यह एक कुदरत की विशिष्ट देन है हमे जिसकी वजह से हम हर कदम पर मुश्किल ऐसी जिंदगी का सामना कर पाते हैं।

Happy Life


        अब हाल के दौर का ही नज़ारा आप देख लीजिये, Covid19 के संक्रमण ने समग्र देश और पूरी दुनियाको मानो को हिला के रख दिया है । बिलकुल नई प्रजाति के वाइरस के सामने हमारा शरीर जैसे की घुटने टेक दे रहा है। इस कोरोना के संक्रमणकी वजह से कई लाखो लोगोने अपनी जान गवाई है! इस समय जब सारी की सारी दवाइयाँ अपना कोई सही असर नहीं दिखा पा रही थी तब बस हमारे सामने एक ही चारा बच कर रह गया था। और वो था हम किसी भी उपाय से हमारी रोगप्रतीयकरक शक्ति को अच्छे से सक्षम बनाएँ। वैसे यह कोई नया आविष्कार नहीं था, सदियो पहेले आयुर्वेद के चिकित्सा ग्रन्थोमे रोगका सामना करेने के लिए  शरीर के अंदरूनी उच्चस्तरीय बल को याने के रोगप्रतीकारक शक्ति को बढ़ाने के लिए कहा गया है। और फिर कोरोना के संक्रामण के सामने हुई immunity बढ़ानेकी चिकित्सा....! परिणाम अत्यंत प्रशांशनीय आए ।  

        रोगप्रतिकरका शक्ति के मजबूत होने से कई सारे लोगो की जान हम COVID19 से बचा पाये है । लेकिन कोरोना के संक्रामण का एक प्रकार का खौफ इतना फ़ेल गया था की लोग मानसिक तौर से विचलित हो गए थे । जो stage पर आसानी से हम recovery कर पाते वहाँ पर सिर्फ और सिर्फ भय और तनाव से ग्रस्त होकर कई लोगोने अपनी जान गवा दी है , तो उसकी दूसरी और पर कोरोना से पूरी तराहसे ज्यादा प्रभावित कई सारे दर्दी अपनी मानसिक स्तर की स्थैर्यता और दृढ़ता के कारण बच भी गए हैं...!

        सिर्फ कोरोना की ही बात क्यू करें, अक्सर जीवन मे हमने कई सारी जगह पर देखा होगा की दृढ़ आत्मविश्वास, धैर्य और मानसिक स्तरके स्थैर्यबल के कारण हम विकट परिस्थितियो का सामना करके उनसे उभर कर आते  हैं । तो इस प्रभावी और सकारात्मक मानसिक बल को आप क्या कहेंगे ? हमारे यही मानसिक सकारात्मक अभिगम को बेशक हम साइकोलोजिकल रोगरतीकारक शक्ति कह शकते है ! जी हाँ, जैसे शारीरिक स्तर के स्वास्थ्य के लिए  रोगप्रतिकारक शक्ति कार्यरत है वैसे ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए मानसिक रोगप्रतिकारक शक्ति कार्यरत है। आप सभी जानते है की हमारा मन और शरीर एकदूसरे के साथ अभिन्न तरीके से जुड़े हुए है। जो भी कार्य आप शारीरिक स्तर पर करते है उसका प्रभाव आपके मन पर जरूर से होता है , वैसे ही आपके मन के विचार-सोच और मानसिक कार्य का प्रभाव निश्चित तौर पर हमारे शरीर पर होता है । जैसे हमारी सोच रहेगी वैसे ही हमारा यह शरीर कार्य करेगा, आखिरकार हमारे शरीर की लगाम तो हमारे मन के पास ही है ना ...!!!

        मन के घोड़े को सही दिशामे चलाने के लिए और मानसिक स्तर पर सकारात्मक तरीके से रोगप्रतिकरक बल को विकसित करनेके लिए हमे कुछ चुनन्दा बातों का ध्यान रखना पड़ेगा । कुछ एसी नित्यक्रमकी  बातें जिनके सतत चुनाव से हम मानसिक बलशाली बन सकते है ।

Be Positive

        आइये देखते है सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य के लिए उत्तम 10 बातें क्या हो सकती है :

1.सकारात्मक अभिगम : बात कोई भी हो, सकारात्मक और नकारात्मक ऐसे दो महत्व के पहलू उसके साथ जुड़े हुए हमे जरूर से मिलेंगे। मान लीजिये के आप अपने दोस्तों के साथ सिनेमा देखनेके लिए बाहर जाने के लिए तैयार हो रहे हैं। घर के बाहर निकलते ही आपको समज आता है की आपकी कार का पंकचर हो गया है। यहा आप अगर नकारात्मक अभिगम अपनाकर सिर पकड़ के बैठ जाते है तो आपका सिनेमा देखने का और दोस्तों के साथ खुश होने का मौका चूक जाएगा। यही पर अगर आप सकारात्मक अभिगम दिखाकर किसी ऑटो रिक्शो या bus पकड़कर जाने का प्रयत्न करते हैं तो शायद आप थोड़ी देर से पहोंचेंगे पर पहुँच तो सकते ही है । साथ ही आप सिनेमा भी जरूर से देख पाएंगे और आपको दोस्तों के साथ खुशी का समय  बिताने का मौका भी मिल जाएगा। हमारे जीवनकी सभी बातोंके  प्रति हमारा अभिगम कैसा रहेता है उससे हमारी खुशी और दुख का आधार रहेता है । सकारात्मक अभिगम द्वारा आप खुद के शरीर को ऊर्जावान बना सकते है, आप यह खुद महसूस कर सकते है। बस थोड़ी आदत मानसिक तौर से सकारात्मक अभिगम की डाल कर देखिये ।

Keep Smiling

हँसते रहिए – हसाते रहिए : सोचिए जरा, क्या होगा अगर कोई आपसे घूरघूर कर – मुंह चड़ाकर बात करे? और आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी अगर कोई आपसे मुस्कुराकर बात करे ? दोनों ही परिस्थिति मे आपका अभिगम उस व्यक्ति के प्रति बदल सा जाएगा, है ना? जाहीर सी बात है आप मुस्कुराकर बात करनेवाले व्यक्ति से ज्यादा सहज और आकर्षित हो पाएंगे। हंसी की भाषा सारी दुनिया मे एक ही है । कोई भी प्रांत हो, कोई भी भाषा बोली जाती हो, कोई भी नगद व्यवहार का चलन वहाँ पर होता हो पर हंसी की भाषा कहीं भी नहीं बदलती । मैं तो यह कहूँगा की मनुष्य और प्राणी को जोड़ने वाली कड़ी एक प्यारी सी हंसी ही तो होगी । आप हँसकर कोई कुत्ते के साथ पेश आएंगे तो वो जरूर से आपका पालतू हो जाएगा। लेकिन अगर घूरकर किसी कुत्ते के साथ पेश आए तो क्या होगा ये आप भलीभाँति जानते हैं। जीवन के विषयों से आनंद पाना यह भी एक कला है। एक मेडिकल रिसर्च के मुताबिक हंसनेवाले लोगो का आयुष्य गंभीर रहेनेवाले मनुष्यसे ज्यादा स्वास्थ्यपूर्ण होता है ।

3.सकारात्मक विचार : हमारा मन एक रिसीवर है, आप उसको जितना देंगे उतना वो लेता रहेगा। लेकिन कौनसी बात आप उसे हररोज देते हैं इस पर आपके मनोस्वास्थ्य अवम रोगप्रतिकारक बल का महत्वपूर्ण आधार रेहता है । जैसे स्वस्थ शरीर के लिए अच्छी खुराक जरूरी है वैसे ही अच्छे मनोस्वास्थ्य के लिए अच्छे विचार की खुराक जरूरी है । बुरे विचार हमें हमेशा ज्यादा आकर्षित करते है, लेकिन उससे हमारे मन पर नकारात्मक असर ही पैदा होगी वो भी तय है । जबकि अच्छे विचार शुरुआत के समय मे शायद हमे आकर्षक न लगे फिर भी लंबे समय के बाद उनका प्रभाव सकारात्मक और अच्छी ऊर्जा से प्रचूर ही रहेगा। अच्छी किताबों का सहवास हमेशा आपको अच्छी ऊर्जा प्रदान करता रहेगा। विद्वान लोगो के साथ दोस्ती और उनके साथ उठने बैठने से और चर्चा विमर्श से भी आप खुद को मनोवैचारिक स्तर पर सकारात्मक बना सकते है ।

Be yourself


4.खुद को प्यार करे : आयुर्वेद विज्ञान के अनुसार इस पूरी पृथ्वी पर आप एक मात्र ऐसे व्यक्ति होंगे जो अपने आप मे एक विशिष्ट होंगे, जी हाँ, आपके जैसा और कोई हो ही नहीं सकता । एकसाथ जन्मे हुए दो twin बालक भी समान नहीं होते है। तो इस तरह सम्पूर्ण जगतमे आप एक विशिष्ट personality होंगे । इसलिए अपनेआप को और अपने गुणो को दूसरे लोगोंके साथ तोलमोल करना छोड़ दें। कोई दूसरे व्यक्तिके साथ आप खुद की तूलना करने से खुद का अपमान कर रहे हो ऐसा मैं मानता हूँ। ये बात को हमे अच्छी तरह से समजना होगा । हरकोइ व्यक्तित्व अपने आप मे पूर्ण और विशिष्ट होता है।  बदलाव यह प्रकृति का नियम है । हमे समय के साथ बदलाव लकारा अनुकूलन साधना होगा । समय के साथ आने वाले बदलावो से डरे नहीं , बल्कि उनके साथ तालमेल बिठाकर खुद को नयीं परिस्थितियोने मे ढाल दें । भूल या गलत निर्णय हर किसी से हो सकता है । अगर आपसे कोई भूल हो गई हो तो उसके लिए ज्यादा अफसोस न करे, बल्कि अपनी गलतियों से सीखकर खुदकों इक जिम्मेदार और प्यारा इंसान बनाए ।  खुदके लिए सकारात्मक ही सोचे और खुद को प्यार करना सीखें। इससे आप आत्मविश्वास पैदा कर पाएंगे, नई बाते सीखने के लिए और तकलीफो से लड़ने के लिए पहेली शर्त आत्मविश्वास है। खुद पर गर्व महसूस करे और सहि मायने मे अगर कोई बाते आप खुद के बारे मे बदलना चाहते है तो आत्मविश्वास के साथ अच्छे बनने का प्रयत्न करें। याद रखिए की, आप अपने खुदकी प्रतिभा निखार रहे है, खुद के version को upgrade कर रहें है, खुदके अच्छे – ऊर्जावान सकरत्मक जीवन के लिए ।

happy relationships


5.अपने निजी संबंधोको मजबूत बनाए : अकेलापन आज के दौर की भेंट है ऐसा मैं मानता हूँ। social media शायद हमारे संबंधो को ज्यादा मजबूत करने के लिए बनाए गए थे , लेकिन उनकी वजह से ही हम अपने खुद के निजी व्यक्तिगत संबंधो से दूर हो रहे हैं। social media के सही उपयोग के द्वारा आप अपने निजी संबद्धों को जोड़ भी सकते है और यही हमे करना सीखना होगा। परिवार और दोस्तों के साथ का मजबूत निजी व्यवहार ही हमे मानसिक स्तर पर स्करात्मक बना सकता है । अपने दोस्तो और परिवार के लोगों की संभाल देखरेख करते रहें, उन्हे जरूर होने पर बिना किसी अपेक्षा से मदद करते रहें । उनके साथ अपने मन की बातों को बताते रहे, उनसे सलाह लेते रहे । अपने दोस्तो और परिवार के साथ प्यारभरे संबंध बनाए रखे जो नकारात्मक परिस्थिति मे आपके लिए सकारात्मक तरीकेसे जुड़े रहें।

6.अपनी प्रतिभा निखारें : आप कौनसे कार्य करनेमे माहिर है? खुद की नौकरी-पेशे से अलग आपकी खुदकी रुचि को जानकार उसे निखारने के लिए समय निकालें । आप अपनी छुपी हुई प्रतिभा को पहेचाने और उसे निखारनेका प्रयत्न भी करे। swimming करना , गाना गाना, पियानो बजाना, cooking करना, चित्र बनाना या कोई ऐसा शौख- रुचि जिसे करने मे आप comfortable हों, जो करने से आप खुश होकर खुदको बाकी सभी चिंताओं से मुक्त कर सके। यह आपका आत्मविश्वास भी बढ़ाएगा और आपके मानसिक स्वास्थ्य को भी अच्छा बनाएगा । अपने पेशे के अलावा भी हमें एक शौख अपनी खुदकी खुशी के लिए रखना चाहिए यह मूज़े अनुभव से ही समज आया है ऐसा मैं जरूर कह सकता हूँ ।

Meditation

7. शारीरक अवम मानसिक कसरत  : शरीर की fitness आपके मन के स्वास्थ्यके लिए बहोत जरूरी है, वैसे ही मन की fitness शरीर के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। मानसिक तौर से फिट होने के लिए प्राणायाम – Meditation हररोज करना आवश्यक है । खुद को शारीरिक तौर से मजबूत करनेके लिए योग – कसरत – सूर्य नमस्कार इत्यादि का प्रयोग हररोज करते रहें । मानसिक और शारीरिक तौर से सक्रिय रहेने से आपकी मनोदेहिक रोगप्रतिकरक क्षमता का सही ढंग से विकास होगा । इससे आपका आत्म सम्मान बनेगा और आप महत्वपूर्ण बटन्मे अपना ध्यान सही मायनेमे केन्द्रित कर पाएंगे।

8.Take a Break : हररोज के कार्य के एक ही कार्यक्रम से मन मानो उब्ब सा जाता है। हररोज के कार्यसे कभी कभी विराम लेना बहोत आवश्यक होता है। यह विराम 5मिनिट का भी हो सकता है, 5 घंटे का या 5 दिन का भी हो सकता है। कार्य की तीव्रता के मानांक पर आप यह विराम खुद से तय करके ले सकते है। कभी कभी 5 मिनिट का छोटा चाय का विराम भी मन को खुश कर देता है । तो कभी कभी सभी कार्य को छोड़कर 4-5 घंटे मनोरंजन का विराम भी तरोताजा कर देता है। तो कभी कभी सब छोड़कर 3-4 दिन प्रकृतती की गोद मे या नई जगह पर समय बिताना मन को ऊर्जा से भरा देता है । रात को नींद के विराम को प्राथमिकता देना ही सबसे उचित होता है, जिससे दिनभर के कामो से थका हुआ हमारा मन पूरी तरह से आराम कर पाये और दूसरे दिन वापस हम तरोताजा होकर सभी कार्य कर पाएँ ।

9.नशीली आदतों से दूर रहे : मन को तरोताजा रखने के लिए आजकल दारू या स्मोकिंग या ड्रग्स को बहोत जल्द ही अपना लिया जाता है । नशीली चीजो से शायद कुछ देर के लिए हम हमारी तकलीफ से दूर हो सकते है लेकिन यह कोई आदर्श उपाय नहीं है । जब नशे से आप बाहर आते है तो वह परिस्थिति वैसे की वैसी ही सामने रहेगी । और नशे की हालत मे आप कोई चिंता या तनाव को दूर नहीं कर पाते हैं बल्कि बढ़ा रहे है ये समजना अवशयक रहेगा । नशीली चीजों के सेवन से आपका मानसिक और दैहिक स्वास्थ्य नकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहेगा यह ही सच्चाई है ।

Prayer

10.आध्यात्मिक और कृतज्ञ बने : आध्यात्मिक बनना एक उत्तम अनुभव होता है । आद्यत्मिक मे आपकी श्रद्धा जितनी घहरी होगी उतना ही आपका मनोबल मजबूत बनेगा । आध्यात्मिकता को अंधश्रद्धा से दूर ही रखना चाहिए । जब चरो और अंधेरा सा लगता है तब पूर्ण श्रद्धा के साथ एक छोटी सी प्रार्थना हमराए आन्तर्मन मे दिया जला सकती है । कई बार हम बहोत छोटी छोटी बातों को दिल मे लिए घूमते है जिससे गुस्सा, अहंकार , तिरस्कार, बदला आदि भावनाए जागृत होती है। यह नाकारतमक भावनाए हमारे रोगप्रतिकारक बल को शून्य कर देती है । हमेशा कृतघ्नता की भावना रखे , लोगो को जल्दी से माफ करे और परमेश्वर का शुक्रिया अदा करे की उन्होने हमे इतना अच्छा जीवन दिया हुआ है । यह हमारे आत्म्स्नमान को बढ़ाएगा और हमे अच्छे मनोभाव से जीवन सकारात्मक तरीके से जीने की प्रेरणा देगा ।

        इस तरह यह बातों का ध्यान रखते हुए हम हमारे मनोबल के साथ साथ हमारी मानसिक रोगप्रतीकारक ऊर्जा को उच्च स्तर पर विकसित कर सकते है जो हमारे खुशखुशाल जीवन के लिए एक गुरुचावि  होगी ।

    -   डॉ .जिगर गोर ( आयुर्वेद विशेषज्ञ ) 

श्री माधव स्मरणम आयुर्वेद क्लीनिक