Psychological Immunity
Your Psychological Health is the Key of Happy Life!
जन्म से ही रोगप्रतिकारक
शक्ति का बल हमारे स्वास्थ्य और विकास के मापदंड तय करता है । स्वस्थ शरीर और
योग्य शारीरिक विकासके लिए अच्छी रोगप्रतिकारक शक्ति का होना अनिवार्य है । अगर कोई
व्यक्तिकी रोगप्रतिकारक शक्ति कम हो तो उसके व्यक्तिगत विकासके parameters achieve नहीं हो पाते है, परिणाम स्वरूप छोटे मोटे कारण की वजह से वो बार बार बीमार पड़ता रहेता है। और
जिसके शारीरिक बल की मात्रा अच्छी होगी वो अच्छीखासी रोगप्रतीकारक शक्ति का आसामी होने
की वजह से बीमार नहीं पड़ेगा और उसका व्यक्तिगत विकास शारीरिक स्तर पर अच्छा हो
पाएगा ।
बचपन
से लेकर बड़े होने तक रोगप्रतिकारक शक्ति का बल हमे विभिन्न रोग और बीमारियों से
बचाता रहेता है । मानो यह एक कुदरत की विशिष्ट देन है हमे जिसकी वजह से हम हर कदम
पर मुश्किल ऐसी जिंदगी का सामना कर पाते हैं।
अब हाल के दौर का ही नज़ारा आप देख लीजिये, Covid19 के संक्रमण ने समग्र देश और पूरी दुनियाको मानो को हिला के रख दिया है । बिलकुल नई प्रजाति के वाइरस के सामने हमारा शरीर जैसे की घुटने टेक दे रहा है। इस कोरोना के संक्रमणकी वजह से कई लाखो लोगोने अपनी जान गवाई है! इस समय जब सारी की सारी दवाइयाँ अपना कोई सही असर नहीं दिखा पा रही थी तब बस हमारे सामने एक ही चारा बच कर रह गया था। और वो था हम किसी भी उपाय से हमारी रोगप्रतीयकरक शक्ति को अच्छे से सक्षम बनाएँ। वैसे यह कोई नया आविष्कार नहीं था, सदियो पहेले आयुर्वेद के चिकित्सा ग्रन्थोमे रोगका सामना करेने के लिए शरीर के अंदरूनी उच्चस्तरीय बल को याने के रोगप्रतीकारक शक्ति को बढ़ाने के लिए कहा गया है। और फिर कोरोना के संक्रामण के सामने हुई immunity बढ़ानेकी चिकित्सा....! परिणाम अत्यंत प्रशांशनीय आए ।
रोगप्रतिकरका शक्ति के मजबूत होने से कई सारे लोगो की जान हम COVID19 से बचा पाये है । लेकिन कोरोना के संक्रामण का एक प्रकार का खौफ इतना फ़ेल गया
था की लोग मानसिक तौर से विचलित हो गए थे । जो stage पर आसानी से हम recovery कर पाते वहाँ पर सिर्फ और सिर्फ भय और तनाव से ग्रस्त होकर
कई लोगोने अपनी जान गवा दी है , तो
उसकी दूसरी और पर कोरोना से पूरी तराहसे ज्यादा प्रभावित कई सारे दर्दी अपनी
मानसिक स्तर की स्थैर्यता और दृढ़ता के कारण बच भी गए हैं...!
सिर्फ कोरोना
की ही बात क्यू करें, अक्सर
जीवन मे हमने कई सारी जगह पर देखा होगा की दृढ़ आत्मविश्वास, धैर्य और मानसिक स्तरके स्थैर्यबल
के कारण हम विकट परिस्थितियो का सामना करके उनसे उभर कर आते हैं । तो इस प्रभावी और सकारात्मक मानसिक बल को
आप क्या कहेंगे ? हमारे यही मानसिक सकारात्मक
अभिगम को बेशक हम साइकोलोजिकल रोगरतीकारक शक्ति कह शकते है ! जी हाँ, जैसे शारीरिक स्तर के स्वास्थ्य के
लिए रोगप्रतिकारक शक्ति कार्यरत है वैसे
ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए मानसिक रोगप्रतिकारक शक्ति कार्यरत है। आप सभी जानते
है की हमारा मन और शरीर एकदूसरे के साथ अभिन्न तरीके से जुड़े हुए है। जो भी कार्य आप
शारीरिक स्तर पर करते है उसका प्रभाव आपके मन पर जरूर से होता है , वैसे ही आपके मन के विचार-सोच और
मानसिक कार्य का प्रभाव निश्चित तौर पर हमारे शरीर पर होता है । जैसे हमारी सोच रहेगी
वैसे ही हमारा यह शरीर कार्य करेगा, आखिरकार हमारे शरीर की लगाम तो हमारे मन के पास ही है ना ...!!!
मन के घोड़े
को सही दिशामे चलाने के लिए और मानसिक स्तर पर सकारात्मक तरीके से रोगप्रतिकरक बल
को विकसित करनेके लिए हमे कुछ चुनन्दा बातों का ध्यान रखना पड़ेगा । कुछ एसी
नित्यक्रमकी बातें जिनके सतत चुनाव से हम
मानसिक बलशाली बन सकते है ।
आइये देखते
है सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य के लिए उत्तम 10 बातें क्या हो सकती है :
1.सकारात्मक अभिगम : बात कोई भी हो, सकारात्मक और नकारात्मक ऐसे दो महत्व के पहलू उसके साथ जुड़े हुए हमे जरूर से
मिलेंगे। मान लीजिये के आप अपने दोस्तों के साथ सिनेमा देखनेके लिए बाहर जाने के
लिए तैयार हो रहे हैं। घर के बाहर निकलते ही आपको समज आता है की आपकी कार का पंकचर
हो गया है। यहा आप अगर नकारात्मक अभिगम अपनाकर सिर पकड़ के बैठ जाते है तो आपका
सिनेमा देखने का और दोस्तों के साथ खुश होने का मौका चूक जाएगा। यही पर अगर आप
सकारात्मक अभिगम दिखाकर किसी ऑटो रिक्शो या bus पकड़कर जाने का प्रयत्न करते हैं तो शायद आप थोड़ी देर से पहोंचेंगे
पर पहुँच तो सकते ही है । साथ ही आप सिनेमा भी जरूर से देख पाएंगे और आपको दोस्तों
के साथ खुशी का समय बिताने का मौका भी मिल
जाएगा। हमारे जीवनकी सभी बातोंके प्रति
हमारा अभिगम कैसा रहेता है उससे हमारी खुशी और दुख का आधार रहेता है । सकारात्मक
अभिगम द्वारा आप खुद के शरीर को ऊर्जावान बना सकते है, आप यह खुद महसूस कर सकते है। बस
थोड़ी आदत मानसिक तौर से सकारात्मक अभिगम की डाल कर देखिये ।
2 हँसते रहिए – हसाते रहिए : सोचिए जरा, क्या होगा अगर कोई आपसे घूरघूर कर –
मुंह चड़ाकर बात करे? और आपकी प्रतिक्रिया
क्या होगी अगर कोई आपसे मुस्कुराकर बात करे ? दोनों ही परिस्थिति मे आपका अभिगम उस व्यक्ति के प्रति बदल सा जाएगा, है ना? जाहीर सी बात है आप मुस्कुराकर बात
करनेवाले व्यक्ति से ज्यादा सहज और आकर्षित हो पाएंगे। हंसी की भाषा सारी दुनिया
मे एक ही है । कोई भी प्रांत हो, कोई भी
भाषा बोली जाती हो, कोई भी नगद व्यवहार का
चलन वहाँ पर होता हो पर हंसी की भाषा कहीं भी नहीं बदलती । मैं तो यह कहूँगा की
मनुष्य और प्राणी को जोड़ने वाली कड़ी एक प्यारी सी हंसी ही तो होगी । आप हँसकर कोई
कुत्ते के साथ पेश आएंगे तो वो जरूर से आपका पालतू हो जाएगा। लेकिन अगर घूरकर किसी
कुत्ते के साथ पेश आए तो क्या होगा ये आप भलीभाँति जानते हैं। जीवन के विषयों से आनंद
पाना यह भी एक कला है। एक मेडिकल रिसर्च के मुताबिक हंसनेवाले लोगो का आयुष्य
गंभीर रहेनेवाले मनुष्यसे ज्यादा स्वास्थ्यपूर्ण होता है ।
3.सकारात्मक विचार : हमारा मन एक रिसीवर है, आप उसको जितना देंगे उतना वो लेता
रहेगा। लेकिन कौनसी बात आप उसे हररोज देते हैं इस पर आपके मनोस्वास्थ्य अवम
रोगप्रतिकारक बल का महत्वपूर्ण आधार रेहता है । जैसे स्वस्थ शरीर के लिए अच्छी
खुराक जरूरी है वैसे ही अच्छे मनोस्वास्थ्य के लिए अच्छे विचार की खुराक जरूरी है ।
बुरे विचार हमें हमेशा ज्यादा आकर्षित करते है, लेकिन उससे हमारे मन पर नकारात्मक असर ही पैदा होगी वो भी तय है । जबकि अच्छे
विचार शुरुआत के समय मे शायद हमे आकर्षक न लगे फिर भी लंबे समय के बाद उनका प्रभाव
सकारात्मक और अच्छी ऊर्जा से प्रचूर ही रहेगा। अच्छी किताबों का सहवास हमेशा आपको
अच्छी ऊर्जा प्रदान करता रहेगा। विद्वान लोगो के साथ दोस्ती और उनके साथ उठने
बैठने से और चर्चा विमर्श से भी आप खुद को मनोवैचारिक स्तर पर सकारात्मक बना सकते
है ।
4.खुद को प्यार करे : आयुर्वेद विज्ञान के अनुसार इस पूरी
पृथ्वी पर आप एक मात्र ऐसे व्यक्ति होंगे जो अपने आप मे एक विशिष्ट होंगे, जी हाँ, आपके जैसा और कोई हो ही नहीं सकता ।
एकसाथ जन्मे हुए दो twin बालक
भी समान नहीं होते है। तो इस तरह सम्पूर्ण जगतमे आप एक विशिष्ट personality होंगे । इसलिए अपनेआप को और अपने
गुणो को दूसरे लोगोंके साथ तोलमोल करना छोड़ दें। कोई दूसरे व्यक्तिके साथ आप खुद की
तूलना करने से खुद का अपमान कर रहे हो ऐसा मैं मानता हूँ। ये बात को हमे अच्छी तरह
से समजना होगा । हरकोइ व्यक्तित्व अपने आप मे पूर्ण और विशिष्ट होता है। बदलाव यह प्रकृति का नियम है । हमे समय के साथ
बदलाव लकारा अनुकूलन साधना होगा । समय के साथ आने वाले बदलावो से डरे नहीं , बल्कि उनके साथ तालमेल बिठाकर खुद
को नयीं परिस्थितियोने मे ढाल दें । भूल या गलत निर्णय हर किसी से हो सकता है । अगर
आपसे कोई भूल हो गई हो तो उसके लिए ज्यादा अफसोस न करे, बल्कि अपनी गलतियों से सीखकर खुदकों
इक जिम्मेदार और प्यारा इंसान बनाए । खुदके
लिए सकारात्मक ही सोचे और खुद को प्यार करना सीखें। इससे आप आत्मविश्वास पैदा कर पाएंगे, नई बाते सीखने के लिए और तकलीफो से
लड़ने के लिए पहेली शर्त आत्मविश्वास है। खुद पर गर्व महसूस करे और सहि मायने मे
अगर कोई बाते आप खुद के बारे मे बदलना चाहते है तो आत्मविश्वास के साथ अच्छे बनने
का प्रयत्न करें। याद रखिए की, आप अपने
खुदकी प्रतिभा निखार रहे है, खुद
के version को upgrade कर रहें है, खुदके अच्छे – ऊर्जावान सकरत्मक
जीवन के लिए ।
5.अपने निजी संबंधोको मजबूत बनाए : अकेलापन आज के दौर की भेंट है ऐसा
मैं मानता हूँ। social media शायद हमारे संबंधो को ज्यादा मजबूत
करने के लिए बनाए गए थे , लेकिन
उनकी वजह से ही हम अपने खुद के निजी व्यक्तिगत संबंधो से दूर हो रहे हैं। social media के सही उपयोग के द्वारा आप अपने निजी संबद्धों को जोड़ भी
सकते है और यही हमे करना सीखना होगा। परिवार और दोस्तों के साथ का मजबूत निजी
व्यवहार ही हमे मानसिक स्तर पर स्करात्मक बना सकता है । अपने दोस्तो और परिवार के
लोगों की संभाल देखरेख करते रहें, उन्हे
जरूर होने पर बिना किसी अपेक्षा से मदद करते रहें । उनके साथ अपने मन की बातों को
बताते रहे, उनसे सलाह लेते रहे । अपने
दोस्तो और परिवार के साथ प्यारभरे संबंध बनाए रखे जो नकारात्मक परिस्थिति मे आपके
लिए सकारात्मक तरीकेसे जुड़े रहें।
6.अपनी प्रतिभा निखारें : आप कौनसे कार्य करनेमे माहिर है? खुद की नौकरी-पेशे से अलग आपकी
खुदकी रुचि को जानकार उसे निखारने के लिए समय निकालें । आप अपनी छुपी हुई प्रतिभा
को पहेचाने और उसे निखारनेका प्रयत्न भी करे। swimming करना , गाना
गाना, पियानो बजाना, cooking करना, चित्र
बनाना या कोई ऐसा शौख- रुचि जिसे करने मे आप comfortable हों, जो
करने से आप खुश होकर खुदको बाकी सभी चिंताओं से मुक्त कर सके। यह आपका आत्मविश्वास
भी बढ़ाएगा और आपके मानसिक स्वास्थ्य को भी अच्छा बनाएगा । अपने पेशे के अलावा भी
हमें एक शौख अपनी खुदकी खुशी के लिए रखना चाहिए यह मूज़े अनुभव से ही समज आया है
ऐसा मैं जरूर कह सकता हूँ ।
7. शारीरक अवम मानसिक कसरत : शरीर की fitness आपके मन के स्वास्थ्यके लिए बहोत जरूरी है, वैसे ही मन की fitness शरीर के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। मानसिक तौर से फिट होने के लिए प्राणायाम
– Meditation हररोज करना आवश्यक है ।
खुद को शारीरिक तौर से मजबूत करनेके लिए योग – कसरत – सूर्य नमस्कार इत्यादि का
प्रयोग हररोज करते रहें । मानसिक और शारीरिक तौर से सक्रिय रहेने से आपकी मनोदेहिक
रोगप्रतिकरक क्षमता का सही ढंग से विकास होगा । इससे आपका आत्म सम्मान बनेगा और आप
महत्वपूर्ण बटन्मे अपना ध्यान सही मायनेमे केन्द्रित कर पाएंगे।
8.Take a Break : हररोज के कार्य के एक ही कार्यक्रम से मन मानो उब्ब सा
जाता है। हररोज के कार्यसे कभी कभी विराम लेना बहोत आवश्यक होता है। यह विराम 5मिनिट का भी हो सकता है, 5 घंटे का या 5 दिन का भी हो सकता
है। कार्य की तीव्रता के मानांक पर आप यह विराम खुद से तय करके ले सकते है। कभी
कभी 5 मिनिट का छोटा चाय का विराम भी मन को खुश कर देता है । तो कभी कभी सभी कार्य
को छोड़कर 4-5 घंटे मनोरंजन का विराम
भी तरोताजा कर देता है। तो कभी कभी सब छोड़कर 3-4 दिन प्रकृतती की गोद मे या नई जगह पर समय बिताना मन को
ऊर्जा से भरा देता है । रात को नींद के विराम को प्राथमिकता देना ही सबसे उचित
होता है, जिससे दिनभर के कामो से
थका हुआ हमारा मन पूरी तरह से आराम कर पाये और दूसरे दिन वापस हम तरोताजा होकर सभी
कार्य कर पाएँ ।
9.नशीली आदतों से दूर रहे : मन को तरोताजा रखने के लिए आजकल
दारू या स्मोकिंग या ड्रग्स को बहोत जल्द ही अपना लिया जाता है । नशीली चीजो से शायद
कुछ देर के लिए हम हमारी तकलीफ से दूर हो सकते है लेकिन यह कोई आदर्श उपाय नहीं है
। जब नशे से आप बाहर आते है तो वह परिस्थिति वैसे की वैसी ही सामने रहेगी । और नशे
की हालत मे आप कोई चिंता या तनाव को दूर नहीं कर पाते हैं बल्कि बढ़ा रहे है ये
समजना अवशयक रहेगा । नशीली चीजों के सेवन से आपका मानसिक और दैहिक स्वास्थ्य
नकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहेगा यह ही सच्चाई है ।
10.आध्यात्मिक और कृतज्ञ बने : आध्यात्मिक बनना एक उत्तम अनुभव
होता है । आद्यत्मिक मे आपकी श्रद्धा जितनी घहरी होगी उतना ही आपका मनोबल मजबूत
बनेगा । आध्यात्मिकता को अंधश्रद्धा से दूर ही रखना चाहिए । जब चरो और अंधेरा सा
लगता है तब पूर्ण श्रद्धा के साथ एक छोटी सी प्रार्थना हमराए आन्तर्मन मे दिया जला
सकती है । कई बार हम बहोत छोटी छोटी बातों को दिल मे लिए घूमते है जिससे गुस्सा, अहंकार , तिरस्कार, बदला आदि भावनाए जागृत होती है। यह
नाकारतमक भावनाए हमारे रोगप्रतिकारक बल को शून्य कर देती है । हमेशा कृतघ्नता की
भावना रखे , लोगो को जल्दी से माफ
करे और परमेश्वर का शुक्रिया अदा करे की उन्होने हमे इतना अच्छा जीवन दिया हुआ है
। यह हमारे आत्म्स्नमान को बढ़ाएगा और हमे अच्छे मनोभाव से जीवन सकारात्मक तरीके से
जीने की प्रेरणा देगा ।
इस तरह यह बातों का ध्यान रखते हुए हम हमारे मनोबल के साथ साथ हमारी मानसिक
रोगप्रतीकारक ऊर्जा को उच्च स्तर पर विकसित कर सकते है जो हमारे खुशखुशाल जीवन के लिए एक
गुरुचावि होगी ।
- डॉ .जिगर गोर ( आयुर्वेद विशेषज्ञ )
श्री माधव स्मरणम आयुर्वेद क्लीनिक
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