Tuesday, August 18, 2020

कुछ बातें इंटरनेट से ना ही सीखें तो अच्छा

What not to learn from Web Contents

अच्छे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कुछ बातें इंटरनेट से ना ही सीखें...

       आज हम समय के साथ दौड़ रहे है। मनुष्य technology और internet के साथ कदम से कदम मिलाकर evolve हो रहा है। Development की नई नई सीमाओं को आज का युवा फतेह कर रहा है । जीतनी तेजी से आज की युवा पीढ़ी आगे बढ़ रही है उतनी ही तेजी से कहीं न कहीं ठोकर लगने की भी संभावना भी सामने रहेती है । जितनी तेजी से इंटरनेट और social media का exposure आज की पीढ़ी को हो रहा है उनसे सही और गलत दोनों बातों का संपर्क होगा ये तय है।


 वैसे तो internet के चंगुल से कहाँ कोई बच पाया है ।  छोटे teenage बच्चों से लेकर बड़े युवा mobile – Social media और OTT Platform पर आने वाले content से प्रभावित सबसे ज्यादा हो रहे है।  हम सभी की personality development मे इन सब का अहम हिस्सा है इस बात को नकारा नहीं जा सकता है । बच्चे, teenager और युवा लोग जो कुछ भी देखते – सुनते है वो उनके दिमाग की गहराही तक पहुंचता है। देखी – सुनी वही बातों से प्रभावित होकर उनका अनुकरण भी वे निश्चित ही करते रहते है ।

                        हमारा दिमाग गलत बातों से ज्यादा प्रभावित होता है। लेकिन कुछ ऐसी बातें है जिनको न ही सीखे तो वो हमारे व्यक्तिगत विकास और सुखी जीवन के लिए बहेतर होगा।

                     Binge watch यह शब्द urban डिक्शनरी मे शायद top list मे होगा । कोई भी web series या online उपलब्ध content को बिना किसी break लिए लगातार देखना Binge Watching कहलाता है। यह online content से मानो हमारी TV देखने की जीवनशैली ही बदल डाली है । streaming platform पर अनगिनत shows और content 24x7 हमारे पास उपलब्ध है जिसे कभी भी कहीं भी देख सकते है। हमारे व्यवहार और विचारों की बार-बार की पुनरावृत्ति विशेष रूप से हमारे दिमाग मे एक पैटर्न बन जाती है, और इस तरह की आदतों को लम्बे समय तक तोड़ना मुश्किल हो जाता है। कोई नई series launch होते ही उसको तुरंत देख लेना यह आजके युवा का एक स्टाइल statement कहलाता है। 8-10 घंटे की वो सिरीज़ को एकसाथ देख कर जैसे कोई बड़ी उपलब्धि हांसील कर लेती है आजकी युवा पीढ़ी ।


                        लगातार 4-5 घंटो तक mobile-TV –laptop screen देखने से हमारी आंखो के muscles weak होते है। इसलिए लंबे समय तक screen देखने के बाद आँको मे dryness या ज्यादा पानी निकलना, आंखे लाल होकर उसमे जलन होना और कई बार तो चश्मे के नंबर भी बढ़ना आदि लक्षण पाये जाते है । केई लोगों को चक्कर आना, सिरदर्द, मानसिक थकान आदि मानसिक तकलीफ पैदा होने लगती है। व्यक्ति अपने आप को परिवार और दोस्तों से दूर कर देता है ।

                        लगातार एक ही जगह पर बैठे रहेने से गरदन – पीठ और कमर का दर्द आजकल बढ्ने लगा है। physical Activities कम होने के कारण पाचन क्रियाएँ मंद होने लगती है, और shows देखते देखते हम कुछ न कुछ खाते पीते भी रहेते है । इसके कारण, gas –acidity – constipation आदि  पेट की तकलीफ़े बढ़ रही है। ज्यादा खाने की वजह से आलस और low energetic feel होता है।

                        Binge Watch के लिए व्यक्ति अपनी नींद और आराम के साथ compromise कर रहा है। आयुर्वेद मे तो नींद को जीवन का मुख्य आधारस्तंभ कहा गया है। Good sound sleep is very essential for healthy body and mind. नींद कम होने की वजह से कई बारा व्यक्ति चिड़चिड़ा, stressful और restless हो जाते है। एक सर्वेक्षण के अनुसार binge watch जो करते हैं उनमे obesity, heart diseases, और diabetes जैसे lifestyle diseases का प्रमाण बहोत बढ़ रहा है।

                                                                                                                            वर्षों पहले, टीवी शो सामाजिक स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते थे  और सभी के लिए आदर्श सीमा निर्धारित करते थे । लेकिन इन दिनों में web series content पर कोई सेंसरशिप नहीं है। अधिक से अधिक दर्शकों को पकड़ने के लिए वे मानसिक स्वास्थ्य के संदर्भ में बहुत निम्न स्तर की बातें दिखा रहे हैं। अबूझ-गंदी -गालियों से भरी भाषा, विवाहेतर संबंध, अवैध यौन संबंध, महिला उत्पीड़न, महिलाओं और बच्चों के साथ अभद्र व्यवहार, बाल अपहरण, तलाक, अवैध संबंध, ब्लैकमेलिंग, खून - हत्याएं, गैरकानूनी तरीके से छीनना, मारना -पीटना, वगैरह वगैरह कितना कुछ जो सामाजिक अवाम व्यक्तिगत तौर से अवांछनीय वही दिखाया जा रहा है ।

                        आज के सिनेमा और वेब सामग्री समाज को बुरे और नकारात्मक संदेशों को बताती और चित्रित करती है। यह बुरे व्यवहार की  बातें आज के युवाओ को वैसा ही अनुकरण करने के लिए प्रेरित करता है । किशोर युवा पीढ़ी को लगता है कि यह बहुत सामान्य बातें है और वास्तविक जीवन में ऐसा ही व्यवहार सामान्य है। इस तरह की सामग्री लोगों के मन में बुरे और बुरे विचारों का नवाचार करती है।

                लगभग सभी वेब श्रृंखला किशोर और वयस्क लोगों में  ड्रग्स , तंबाखू - smoking और शराब का सेवन दिखाती हैं। विभिन्न प्रकार की दवाओं और शराब और धूम्रपान का सेवन करना एक बहुत ही अच्छी चीज - cool things के रूप में प्रचारित किया जाता है। उत्सुकता के साथ, वेब सामग्री में दिखाए गए रोमांच का आनंद लेने के लिए, किशोर और युवा ड्रग्स और शराब लेने की कोशिश करने के लिए तरसते हैं। दशक पहले व्यसन केवल समाज में धूम्रपान या शराब से माना जाता था। अब नशा मतलब इनसे ऊपर चलकर, pleasure tablets, ड्रग्स इंजेक्शन और सूंघने के पाउडर तक चला गया है। बड़ी बात यह है कि किशोर और युवा इन चीजों के दुष्प्रभावों के बारे में पूरी तरह से अनजान होते  हैं, उनके एक गलत कदम से यह कैसे उनके जीवन को बुरी तरह से बर्बाद कर सकता है इस बात से पूरी तरह बेखबर होते है ।

                    भारत सदियों से अपने पारिवारिक मूल्यों के लिए जाना जाता देश है। लोग बिना लालच के एक दूसरे की मदद करते हैं, लोग समाज में लोगों के साथ दयालु व्यवहार करते हैं, बच्चों, बड़ों और महिलाओं का सम्मान करना भारत का मूल मूल्य है। अश्लील और गंदी वेब सामग्री हमारे मानवीय मूल्यों को गिरा दे रही है। इन बातों को बिना समज से किया गया अनुकरण हमारे समाज के, हमारी संस्कृति के मूल मूल्यों को तोड़ता है।


        इंटरनेट सभी प्रकार की सामग्री से भरा पड़ा  है । एक तरफ जहां वेब सामग्री अपमानित, आपतिजनक  और नकारात्मक सामाजिक मूल्यों से भरी है, वहीं दूसरी ओर वेब सामग्री ज्ञान और जानकारी से भी भरी है। इसमे कोई संदेह नहीं है की कई सकारात्मक और नकारात्मक  सामग्री इंटरनेट पर व्यापक रूप से उपलब्ध हैं। लेकिन हमें अपना पक्ष चुनना होगा। मानव मनोविज्ञान आसानी से नकारात्मक सामग्री से प्रभावित हो सकता है। वेब Content हर शैली की है और इसलिए हम प्रत्येक व्यक्तिगत Contents का चयन करने के लिए स्वतंत्र हैं। हमें समझना चाहिए और अन्य को यह समझना चाहिए कि सोशल मीडिया / ओटीटी प्लेटफार्मों / टीवी श्रृंखला पर दिखाई जाने वाली सभी चीजें पूरी तरह से सच नहीं होती हैं। कुछ चीजों को टालना हमारे बेहतर विकास के लिए योग्य है। हमें यह देखना होगा कि हमारे किशोर-युवा पीढ़ी  सोशल मीडिया और वेब श्रृंखला सामग्री से क्या देख रहे हैं और सीख रहे हैं। हमारे लिए CHOICE हमेशा उपलब्ध है। हमें वह चुनना चाहिए जो हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक तौर से सकारात्मक हो। केवल हमारी व्यक्तिगत सकारात्मक सोच और अभिगम ही हमरे सामाजिक मूल्यों में अच्छे सुधार और बदलाव लाती है। 


        अंत में हमें सोचने की जरूरत है, क्या हम सिर्फ आंखे बंद करके नकारात्मक बाते अपनाना चाहते हैं या इसके बजाय हम सोच और व्यवहार के सकारात्मक पैटर्न के साथ अपने नैतिक मूल्यों में सुधार करना चाहते हैं। हमें जीवन के उच्च मानकों को स्थापित करने के लिए कुछ चीजों को अनजान करना सीखना होगा...बहेतर व्यक्तिगत विकास के लिए ....अच्छे समाज के बदलाव के लिए और शांतिपूर्ण जीवन के लिए !!!

Friday, August 14, 2020

उपवास: शरीर को शुद्ध करने का एक आसान तरीका

 उपवास: शरीर को शुद्ध करने का एक आसान तरीका

                

स्वच्छता हर कोई पसंद करता है। हम अपने आसपास के वातावरण को यथासंभव स्वच्छ रखने का प्रयास करते हैं। गांधीजी ने कहा है कि जहां स्वच्छता है, वहां प्रभुत्व का निवास है।



                        हम बाहरी शारीरिक स्वच्छता के लिए हर दिन प्रयास करते हैं। लेकिन हम शायद अपने भीतर के मन और शरीर को साफ करने के लिए बहुत कम कर रहे हैं। यदि हम किसी मशीन से लगातार काम करना जारी रखते हैं, तो कुछ क्षमता के बाद यह खराब होने लगेगा, उस मशीन की कार्यक्षमता कम हो जाएगी। लगातार कार्यभार को ओवरलोड करने से शरीर की शारीरिक कार्यप्रणाली और दिमाग की मानसिक कार्यप्रणाली कमजोर हो जाती है और यह अपना उचित कार्य करने में असमर्थ हो जाता है। 

                    ऐसे समय में, यदि शरीर या मन की मशीन / शरीर अंग को समय-समय पर आराम दिया जाता है, तो यह फिर से अच्छी तरह से करने में सक्षम हो जाता है। चाहे वह शरीर हो , हमारा मन हो  या मशीन हो, समय-समय पर उनकी service करना बहुत महत्वपूर्ण है।

                    प्राचीन काल से आयुर्वेद की एक कहावत प्रचलित है-

" योगी एक बार खाता है, पीड़ित दो बार खाता है और एक बीमार व्यक्ति अक्सर खाता  है।" 

जो लोग कड़ी मेहनत करते हैं उन्हें अधिक खाने की आवश्यकता होती है। लेकिन आज के समय की बात करें तो हमारा  शारीरिक श्रम कम हो गया है लेकिन भोजन मात्रा बहुत बढ़ गई है। इसलिए हमारे पाचन तंत्र पर बहुत तनाव  पड़ रहा है । पाचन तंत्र एक ऐसी मशीन है जो दिन-रात हमारे लिए काम कर रही है। हमारा पाचन तंत्र ओवरवर्क के कारण ठीक से काम नहीं कर सकता है। आयुर्वेद के अनुसार, अधिकांश बीमारियों की जड़ खराब पाचन है। इसलिए उन्होंने इस प्रणाली को शिथिल करने का एक तरीका खोजा और इसे नाम दिया: उपवास ....!

                    एक निश्चित तरीके से भूखे रहने की क्रिया को संस्कृत में "उपवास" कहा जाता है। संस्कृत शब्द "उपवास" दो अलग-अलग शब्दों से बना है। "अप" का अर्थ निकट है, और "वास" का अर्थ है जीना। संस्कृत में एक और अर्थ इस तरह भी है, उप + वासत: -उच्च स्तर पर जीने या जीने का अर्थ। दोनों अर्थों का सार यह है कि उपवास के माध्यम से हम अपनी उच्च आत्मा के करीब पहुंच जाते हैं। उपवास का उद्देश्य भौतिक मूल्यों को पार करना और आध्यात्मिक मूल्यों में किसी के मन और शरीर को प्रस्तुत करना कहा जा सकता है।


भारतीय परंपरा आध्यात्मिक परंपरा है जिसके माध्यम से जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करना है। न केवल हिंदू धर्म में, बल्कि जैन धर्म, बौद्ध धर्म, इस्लाम और ईसाई धर्म में उपवास और इसके लाभों के बारे में विस्तार से लिखा गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, धर्म और आध्यात्मिकता के पालन के लिए हिंदू धर्म में, एक व्यक्ति में संयम अवम परोपकार गुणो के लिए जैन धर्म में उपवास करना लाभकारी कहा है, मुस्लिम धर्म में रोजा, ईसाई धर्म में अव्यक्त उपवास, काला उपवास आदि का सुझाव भी दिया गया है।

आयुर्वेद के ग्रंथ जीवनशैली की व्याख्या करने वाले विज्ञान हैं। आयुर्वेद के ग्रंथों को लिखने वाले ऋषि दिर्घ्द्र्ष्टा और चतुर थे। आयुर्वेद के माध्यम से, उन्होंने आदर्श अवधारणा को दिखाया है कि मनुष्य का जीवन मृत्यु तक स्वस्थ रहना चाहिए और जिससे जीवन के मूल्यों में वृद्धि होती रहे  है और मोक्ष प्राप्त होता है।


जठरो भगवान अग्नि : ईश्वर: अन्नस्य पाचक : ॥


                     भगवद गीता में, भगवान कृष्ण कहते हैं कि मैं वास्तविक अग्नि हूं जो हर जीवित व्यक्ति में भोजन को पचाता है। और इसीलिए आयुर्वेद में अग्नि को भगवान कहा जाता है।


                    जीभ के लालच और इंद्रियों के प्रलोभन पर काबू ना रखते   हुए दैनिक तौर पर हम विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ खाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, एक समय भोजन लेने के बाद, जब तक यह पच न जाए, तब तक  दोबारा दूसरा भोजन न खाएं। यदि पहले लिया गया भोजन अच्छी तरह से पचता नहीं है और दूसरी खुराक ऊपर से ली जाती है, तो शरीर में "आम दोष" नामक एक जहरीला तत्व बनता है। इससे शरीर के किसी भी हिस्से में बीमारी फैलने की संभावना बढ़ जाती है।    उनसे विभिन्न छोटी और बड़ी बीमारियां भी पैदा होती हैं। उपवास  यह पाचनतंत्र तक सीमित नहीं है। उपवास शरीर के हर भाव को अपने विषय से दूर रखना - संयम रखना है। इसीलिए ऋषियों द्वारा आयुर्वेद में  इन्द्रिय विषय त्याग से उपवास करने के विचार का उल्लेख किया गया है। जिसके माध्यम से हम पूरी तरह से स्वस्थ दीर्घायु का आनंद ले सकते हैं। इस तरह की एक उत्कृष्ट चीज को धर्म और आध्यात्मिकता से जोड़ा गया ताकि आम आदमी कभी भय के माध्यम से या कभी विश्वास के माध्यम से अच्छी तरह से इसका पालन कर सके।


  आयुर्वेद मे उपवास का विचार:           

आयुर्वेद में, चिकित्सा के दो मुख्य प्रकार हैं, अप-तर्पण और संतर्पण। जिसमें उपवास चिकित्सा एक प्रकार की अप-तर्पण चिकित्सा है। उपवास को चिकित्सा-थेरेपी के रूप में एक उचित आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह से किया जा सकता है। सामान्य उपवास किसी भी समय किया जा सकता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, हमें हर 15 दिनों मे एक बार बहुत कम खाने का या बिलकुल न खाने का मन करता है। इस तरह की बात न केवल इंसानों में बल्कि जानवरों में भी मौजूद है। आपने देखा होगा कि कई जानवर महीने के निश्चित समय पर बिल्कुल नहीं खाते हैं या बहुत कम खाते हैं।आजकल मनुष्य अपने दैनिक जीवन में इतना व्यस्त है कि वह अब अपने शरीर के प्रति जागरूक नहीं है। यदि आप हमारे शरीर के सूक्ष्म संदेशों से अवगत हैं, तो आप इसे निश्चित रूप से समझ सकते हैं। इसके लिए, हिंदू कैलेंडर के अनुसार, विद्वानों ने एकादशी के दौरान हर 15 दिन में एक बार उपवास करने का सुझाव दिया है। यहां स्वास्थ्य के साथ-साथ आस्था - धर्म और विश्वास का एक सूक्ष्म विचार संलग्न किया गया है।

चातुर्मास्ये नरो यो वै त्यजे अन्नादि भक्षणं I
गच्छति हरि  सायुज्यं भूयस्तु प्रजायते II

                     भारत मे बारिश  के महीनो मे क्यो उपवास किया जाता है ? उपवास को धर्म के साथ क्यूँ जोड़ा गया है ?

भारत में, बारिशके मौसम के दौरान, विशेषकर चातुर्मास में, धर्मों के अनुसार उपवास की सलाह दी जाती है। आयुर्वेद की दिनचर्या के अनुसार, बारिश के मौसम में बादल की छाया के कारण पृथ्वी पर सूर्य की शक्ति मंद हुई रहती है। "ब्रह्मांड मे जो कुछ है वह हमारे शरीर में भी है" -इस सिद्धांत के अनुसार शरीर की पाचनशक्ति भी कम ही हुई रहती है  । इसके अलावा, मानसून के दौरान बारिश का पानी, सब्जियां, कंद और खाद्य पदार्थ पचाने में मुश्किल होते हैं। कम धूप और नमी के कारण, भोजन जल्दी से कीटयुक्त हो जाता है और सड़ने लगता है। खराब पाचन वाले शरीर में, इस समय ऐसे भारी और खराब खाद्य पदार्थ वर्जित हो जाते हैं। इसलिए इस दौरान आयुर्वेद में उपवास का महत्व बढ़ जाता है। कहा जाता है कि चातुर्मास के दौरान भोजन से परहेज करने वाला व्यक्ति भगवान को पा लेता है। यहाँ भगवान को स्वास्थ्य-कल्याण के रूप में पाया जा सकता है। इस वैज्ञानिक मामले को धर्म से जोड़ कर उपवास को व्यापक वर्ग को निभाने के लिए समजाना है और इस कई सारे लोग धर्म के साथ इसे जुड़ा हुआ पाने की वजह से जरूर से पालन करते है ताकि स्वास्थ्य सूखाकारी व्यक्तिगत और सामाजिक रूप से बहेतरीन रहेती है । 

                    उपवास करते समय ध्यान रखने योग्य बातें:

      1. शरीर की शक्ति के अनुसार उपवास करना। दूसरों की नकल करने के लिए आँख बंद करके  उपवास न करे । 

    2. अगर आप उपवास नहीं कर पर रहे हैं, तो आप दिन मे एक बार में सुपाच्य और कम भोजन ले सकते हैं। दिन के दौरान थोड़ा गुनगुना पानी पिएं। उपवास के दौरान कोल्ड ड्रिंक या ठंडा पानी न पिएं।

    3. उपवास के दौरान फल, सूरन, काले अंगूर, खजूर आदि का उपयोग संयम से किया जा सकता है। उपवास के दौरान लोग आलू, अरारोट, मूंगफली, वड़ा, साबुदाना, तेल में तले पकवान आदि का उपयोग करते हैं। जिसका अर्थ उपवास कतह ही नहीं है। इसके विपरीत, यह वजन बढ़ाने  कोलेस्ट्रॉल और मधुमेह के जोखिम को बढ़ाता है।

    4. उपवास करते समय अत्यधिक शारीरिक श्रम न करें।

   5. उपवास के दौरान मन को एकाग्र करें। ध्यान- meditation से आंतरिक शक्ति मजबूत होगी।

   6. उपवास के दौरान अन्य इंद्रियों के विषयों को भी छोड़ने का प्रयास करें। जैसे कि कम बोलना, कम टीवी-मोबाइल देखना, बहुत तेज संगीत सुनने के बजाय हल्का मधुर संगीत सुनना इत्यादि ।

   7. उपवास के समय शरीर कमजोर हो जाए तो उपवास को लम्बा न करें।  उपवास तोड़ते समय  भोजन पर ना टूटें। भोजन की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाएं।

    8. अत्यधिक उपवास शरीर को कमजोर करता है और आवश्यक पोषक तत्वों की कमी के कारण शरीर के प्रमुख अंगों के कार्य भी असंतुलित हो जाते हैं जो अक्सर खतरनाक होता है इसलिए शरीर की प्रकृति समझने के बाद ही उपवास करना चाहिए।

     9. वजन कम करने के लिए या किसी डॉक्टर की सलाह लिए बिना, लोग अक्सर अपने आहार को इस हद तक कम कर देते हैं कि उचित पोषण की कमी के कारण, मानसिक विकार भी उत्पन्न हो जाते हैं,  इसलिए यह सोचना आवश्यक है कि स्वयं के लिए क्या फायदेमंद है।

    10. उपवास एक उचित प्रामाणिक आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह से शुरू किया जा सकता है जो चिकित्सा का एक रूप होगा, लेकिन एक चिकित्सा प्रयोग नहीं।

                महात्मा गांधी उपवास के प्रबल पक्षधर थे। उपवास के लिए उनके शब्द थे:

A genuine Fast cleanses the body, mind and soul. It crucifies the flesh and to that extent sets the soul free. A sincere prayer can work wonders. It is an intense longing of the soul for its even greater purity. Purity thus gained, when it is utilized for a noble purpose, becomes a prayer. I believe that there is no prayer without fasting and there is no fast without prayer.

- Written By Dr.Jigar Gor (Ayurveda Consultant )