Tuesday, December 29, 2020

हेमंत और शिशिर ऋतुचर्या Ayurveda Lifestyle Regime in Winter Season

शिशिर अवम हेमन्त ऋतुचर्या

Ayurveda Lifestyle Regime in Winter Season

शिशिर ऋतु 


              स्वस्थ रहेने के लिए आयुर्वेद के ग्रंथ - संहिताओ मे ऋतु अनुसार जीवनशैली के नियम बताए गए है ।            आयुर्वेद संहिताओ मे यह वर्णन मिलता है की, जो मनुष्य ऋतु के अनुसार अनुकूल आहार विहार अपनाता है और प्रतिकूल बातों से दूर रहता है उस के शरीर मे  सभी प्रकार के बल की वृद्धि होती है ।

              सूर्य और चंद्रमा की गतिविधी के अनुसार एक वर्ष को ऋतु अनुसार प्रमुखतः छः ऋतुओं मे बांटा गया है । ठंडी का मौसम समान्यतः हेमंत और शिशिर ऋतु मे अनुभव किया जाता है ।

हेमंत – शिशिर ऋतु के दौरान वातावरण :

          हेमंत ऋतु को हम ठंडी के आगमन की ऋतु या “Pre-Winter Phase” कह सकते है। दिवाली के पर्व के समय हेमंत ऋतु के आने के लक्षण वातावरण मे दिखने लगते है। भारतीय केलेण्डर के मुताबिक मागशीर्ष और पोष का महिना हेमंत ऋतु कहलाता है । याने की English calendar के अनुसार  नवंबर और दिसंबर का महिना यह हेमंत ऋतु का रहेगा ऐसा हम कह सकते है ।   यह समय दौरान सूर्य की गति दक्षिणायन की ओर होता है । यह समय दरम्यान रात्री की अवधि लंबी और दिन छोटे होते है । आयुर्वेद मे यह समय विसर्ग कल कहा जाता है । इस समय चंद्रमा का बल अधिक और सूर्य बल क्षीण रहेता है । रात के समय चंद्रमा से ओस भी बरसने लगती है । 

          भारत मे शिशिर ऋतु यह सबसे ठंडी ऋतु होती है । शिशिर ऋतु का समय काल जनवरी – फरवरी का या माह – फाल्गुन का महिना माना जाता है । इस समय के दौरान वायु रूखी हो जाती है, वातावरण मे सूखापन महसूस होता है ।  सूर्य की गती उतरायन की तरफ होती है । यह अग्नि गुण प्रधान ऋतु है । शिशिर ऋतु मे चन्द्र का बल कम होता जाता है और सूर्य का बल धीरे धीरे बढ़ता जाता है, जो की ग्रीष्म ऋतु के आने तक बहोत ही बढ़ जाता है । आयुर्वेद मे यह ऋतु समय को आदान कल कहा जाता है ।

          हेमंत और शिशिर ऋतु शरीर को बलवान बनाने के लिए मुख्यऋतु है । कहा जाता है अगर यह ऋतु मे शरीर की ताकत और रोग प्रतिकारक शक्ति सही ढंग से बना ली जाए तो आपका आनेवाला पूरा साल निरोगी और तंदूरस्त जाएगा ।

food


ठंडी में भूख क्यूँ ज्यादा लगती है ?

          ठंडी की ऋतु के दौरान बाहरी ठंड की वजह से हमारे त्वचा के सूक्ष्म छिद्र संकुचित होकर बंद हो जाते है । इसलिए ही हमें पसीना भी कम होता है । यह त्वचा के छिद्र बंद हो जाने के कारण शरीर की अंदरूनी गर्मी त्वचाके माध्यम से आहार नहीं निकाल पाती है । यह एक शरीर का कुदरती तौर से शरीर को गरम रखने का mechanism है । शरीर की ऊष्मा जो बाहर नहीं नीकल पाती, उससे शरीर के तापमान का नियंत्रण होता है । शीत काल मे स्वाभाविक रूप से ही मनुष्य को बल प्राप्त होता है । बलवान व्यक्ति  और ठंडी की वजह से शारीर मे उत्पन्न हुए वायु के कारण जठर में स्थित हमारी पाचक अग्नि प्रबल तरीके से प्रज्वलित हो जाती है। इसी कारण से शरीर खुराक को आसानी से पचाने में सक्षम हो जाता है । इसलिए ज्यादा भूख लगती रहती है । अगर इस भभकती अग्नि को आहार रूपी ईंधन कम पड़े तो यह अग्नि शरीर की धातुओं को भी जला कर नाश कर ससक्ति है । इसीलिए इस ऋतु मे पचने में भारी – पौष्टिक और शक्ति वर्धक व्यंजन का सेवन हितकारी कहा गया है ।

food in winter


हेमंत और शिरीर ऋतुचर्या :

          आइये अब हम ये देखें की हेमंत और शिशिर याने की ठंडी की यह ऋतु के दौरान आहार और विहार  मे कौनसी बातों का ध्यान रखना हमारे लिए हितकारक होगा।

हेमंत और शिशिर ऋतु मे आहार :

- यह ऋतु के दौरान राते लंबी और दिन छोटे होते है , अतः सुबह उठकर पौष्टिक और शक्तिवर्धक खुराक लेना जरूरी है । अगर ठीक तरह से खुराक न ली जाए तो शरीर मे संचित ऊष्मा की वजह से शरीर की धातुओ पर  विपरीत परिणाम आ सकता है और वायु दोष की दुष्टि हो सकती है ।

- यह ऋतु मे पीने के पानी को गरम कर के पीना चाहिए । ठंडे पानी से जठर की पाचक अग्नि मंद हो सकती है । सौंठ या तुलसी युक्त पानी का सेवन कारण स्वास्थ्यप्रद रहेगा ।

- यह ऋतु मे उपवास नहीं करना चाहिए । देर तक भूखे भी नहीं रहना चाहिए ।

- मधुर और खट्टे स्वाद के, स्वादिष्ट और पौष्टिक खुराक ज्यादा लेनी चाहिए । सूखे, बासी, कडवे और कसैले स्वाद के खुराक नहीं लेने चाहिए ।

- तीखे और कडवे गुण के खाद्य पदार्थ यह ऋतु मे नहीं लेने चाहिए।

- खजूर, आंवला, गन्ना, केला, अमरूद, नारियल आदि फल जरूर से लें। ये मौसम मेन आंवले ताजा और अच्छे मिलते है ।  आवले का मुरब्बा, च्यवनप्राश या किसी भी तरीके से आंवले का सेवन अति उत्तम माना गया है ।

इस समय के दौरान गाजर, पुदीना, पालक, बैंगन, मटर, फूलगोबी और ताजी हरी सब्जियाँ भरपूर मात्रा मे खाएं । ताजी सब्जियां और गरम मसालो से युक्त सूप भी बनाकर लेना स्फूर्ति दायक और स्वास्थ्यप्रद साबित होगा ।

- खुराक पकाने मे सौंठ, काली मिर्च, लहसून, ताजी हल्दी, अदरक, मेथी, पुदीना, नींबू और गरम मसालों का उपयोग जरूर से करना चाहिए ।

- गाय का घी, गौंद, और गुड से बने पौष्टिक लड्डू, तिल – मूँगफली के लड्डू – चिक्की  आदि व्यंजन शरीर को ऊर्जा देने मे सहायक होंगे ।

- दूध, दूध की मलाई, घी, रबड़ी, मक्खन, मिश्री, शहद, पंचामृत आदि नियमित तौर से सेवन करे ।

- मूँगफली, तिल, बादाम, अखरोट, अंजीर, जरदालू, मुनक्का, केसर का सेवन शरीर के हितकारक है ।

- गेहूं, बाजरा, उड़द दाल, चावल , चने, मकके से बने व्यंजन लेने चाहिए ।

- जो लोग मांसाहार करते है वे यह ऋतु मे पाचन शक्ति के अनुसार ले सकते है ।

 शिशिर ऋतु मे मद्यपान कम मात्र मे करने के लिए कहा है । यह नशा करने के लिए नहीं होता है । मदिरा की मात्रा कम और सही विधि से लेने का आयुर्वेद मे कहा गया है ।

शिशिर ऋतुचर्या


हेमंत और शिशिर ऋतु मे विहार :

- इन ऋतु के दौरान शरीर मे वायु दोष की मात्र बढ़ती है , और कफ दोष की संचिति होती है ।

- इस ऋतु मे शरीर को बलवान और सुखी त्वचा को कांतिमय बनाए के लिए तेल की मालिश हररोज करनी चाहिए । मालिश करते वक़्त तिल के तेल को हल्का गरम कर के लेना चाहिए । तेल को गरम करने से वो त्वचा मे आसानी से प्रवेश कर सकता है ।

- मालिश करने के लिए तिल का, जैतून का या सरसों के तेल का उपयोग करना चाहिए ।

- जैसे सुखी लकड़ी पर तेल लगाकर उसे मजबूत किया जा सकता है वैसे ही हमारे सूखे शरीर पर तेल की मालिश करने से शरीर बलवान बन जाता है ऐसा विधान आयुर्वेद संहिताओ मे मिलता है ।

- तेल मालिश के बाद स्टीम बाथ ले सकते है । साथ ही व्यायाम और कसरत करें ।

- विविध कसरत करना , दंड – बैठक करना, लंबी सैर, दौड़ना, साइकल चलाना, कबड्डी – कुश्ती – क्रिकेट – टेनिस जैसे विविद प्रकार के खेल खेलना यह मौसम मे स्वास्थ्य प्रद होता है ।

- सूर्य नमस्कार, विविध योगासन और प्राणायाम का अभ्यास करना  शरीर के हितकारक होता है ।

- सूर्य स्नान , सूर्य नमसकर, धूप का सेवन करने से ठंडी दूर होगी और शरीर स्फूर्तिवान बनेगा।

- स्नान के लिए गुंगुने गरम पानी का उपयोग करे । बहोत ज्यादा गरम पनि सिर पर न डाले । ठंडी होने पर भी सुबह मे स्नान  करना शरीर की स्फूर्ति के लिए आवश्यक होता है ।

- ठंडी ज्यादा होने के कारण कई लोग सुबह जल्दी से नहीं उठते हैं । किन्तु ये गलत बात है । शरीर के अच्छे स्वास्थ्य के लिए सुबह जल्दी उठना जरूरी होता है । देर से उठने पर आलस निश्चित ही आपका पीछा नहीं छोड़ेगी ।

- यह ऋतु मे दिन मे ज्यादा नहीं सोना चाहिए ।

- अत्यधिक ठंड सहन करना, ठंडी हवा मे घूमना स्वास्थ्य के लिए हितकारी नहीं है ।

- ठंड से बचने के लिए गरम और ऊनी वस्त्र यह ऋतु मे पहेनने चाहिए । दिन मे ज्यादा खुल्ली हवा मे नहीं घूमना चाहिए । रात्री मे गरम कमरे मे सोना और अलाव तपना लाभदायी होता है ।

- घर मे अघरू या गुग्गुल का धूपन करना चाहिए । धूप को नाक से सूंघने पर श्वास वही नलिकाए कफ मुक्त होकर स्वस्थ रहेंगी ।

Master Stroke: 

"We cannot stop the winter or the summer from coming. We cannot stop the spring or the fall or make them other than they are. They are gifts from the universe that we cannot refuse. But we can choose what we will contribute to life when each arrives."– Gary Zukha 

To read this article in ENGLISH by DrJigar Gor, Pls Visit:

https://www.thelitthings.com/2020/12/hemant-and-shishir-ritucharya-ayurveda.html 

Sunday, October 4, 2020

शरद ऋतुचर्या: स्वस्थ आयुर्वेद जीवनशैली Ayurveda Lifestyle regime in Autumn Season

 शरद ऋतुचर्या: स्वस्थ आयुर्वेद जीवनशैली

A Healthy Ayurveda Lifestyle regime for healthy Body - Mind and Soul...!

Sharad ritu


        जिस तरह से बाहरी वातावरण मे ऋतुए बदलती रहती है वैसे ही हमारे शरीर मे भी बदलाव आते रहते है । आयुर्वेद के लोकपुरुष सिद्धांत के अनुसार जो हमारे भीतर है वही बाहर प्रकृती मे भी है । बाह्य बदलावों का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है । जिस तरह पेड़ पौधे वातावरण के अनुसार अपने आप मे बदलाव लाते है बिलकुल वैसे ही हमे भी स्वस्थ जीवन के लिए जीवन शैली मे बदलाव लाने जरूरी होते है । इसलिए आयुर्वेद के अनुसार पुरानी ऋतु की दिनचर्या छोड़कर हमे नयी आनेवाली ऋतु की दिनचर्या का अभ्यास शुरू करना चाहिए । जिससे शरीर और वातावरण के बदलाव को संतुलित किया जा सके । आयुर्वेद मे इसीलिए ऋतुचर्या के अध्याय लिखे गए हैं । जहां पर विविध ऋतु अनुसार आयुर्वेदीय जीवनशैली का वर्णन मिलता है । ताज्जुब की बात तो यह है की आज से हजारों साल पहेले लिखी हुई यह जीवनशैली आज के मापदंडो पर भी सत्य साबित होती हुई नजर आती है ।  

        वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु का आगमन होता है । भारतीय कलेंडर के मुताबिक शरद ऋतु भाद्रपद से लेकर कार्तिक माह तक देखि जाती है । जो अगस्त से लेकर ओक्टोबर तक प्रायः देखने मिलती है । समान्यतः यह समय मे श्राद्ध, नवरात्रि, विजयादशमी और शरद पुर्णिमा जैसे त्योहार हम मनाते है ।

अथर्ववेद 


जीवेम शरदः शतम्अथर्ववेद का मंगल श्लोक :

        कई बार हमने सुना होगा की किसी के जन्मदिन पर बुज़र्गों द्वारा जीवेत शरद: शतम -इस तरह का आशीर्वाद दिया जाता है। यह अथर्ववेद से लिया हुआ सूक्त है। हम में से अधिकाँश लोग शायद यह जानते होंगे कि आयुर्वेद भी अथर्ववेद का ही एक उपवेद है अतः यह भी एक वैदिक ग्रन्थ है जिसमें सुख पूर्वक सौ एवं उससे अधिक वर्ष तक जीने की कामना की गयी है । अथर्ववेद की 19 वें खंड के 67 वें सूक्त में ऐसे ही एक मंत्र का वर्णन है जिसे जानना एवं समझना आयुर्वेद को जानने एवं समझने के लिए आवश्यक है :

     

पहला सूक्त :पश्येम शरदः शतम् ।।।।

        अर्थ: हम सौ शरदों को देखें अर्थात सौ वर्षों तक हमारी नेत्र इन्द्रिय स्वस्थ रहे ।

        दूसरा सूक्त :जीवेम शरदः शतम् ।।२।।

      अर्थ : हम सौ शरद ऋतु तक जीयें यानि हम सौ वर्ष तक जीयें।

        तीसरा सूक्त : बुध्येम शरदः शतम् ।।३।।

      अर्थ : सौ वर्ष तक हमारी बुद्धि सक्षम बनी रहे अर्थात मानसिक तौर पर सौ वर्षों तक स्वस्थ रहे ।

        चौथा सूक्त :रोहेम शरदः शतम् ।।४।।

       अर्थ: सौ वर्षों तक हमारी वृद्धि होती रहे अर्थात हम सौ वर्षों तक उन्नति को प्राप्त करते रहे ।

        पांचवा सूक्त : पूषेम शरदः शतम् ।।५।।

       अर्थ : सौ वर्षों तक हम पुष्टि प्राप्त करते रहें, हमें अच्छा भोजन मिलता रहे ।

        छठा सूक्त : भवेम  शरद : शतम् ।। ।।

       अर्थ : हम सौ वर्षों तक बने रहे । यह दूसरे सूक्त की पुनरावृति है ।

        सातवाँ सूक्त : भूयेम शरद: शतम् ।।।।

        अर्थ : सौ वर्षों तक हम पवित्र बने रहें ।

        आठवां एवं अंतिम सूक्त : भूयसी शरदः शतात ।।।।

        अर्थ : सौ वर्षों के बाद भी ऐसे ही बने रहे ।

अर्थात अथर्ववेद का यह मन्त्र ईश्वर से सुखायु एवं दीर्घायु की कामना करने का मंगलकारी मन्त्र है ।

आशीर्वाद 

आइये जानते है क्यो “जीवेम शरदः शतम्” कहा जाता है :

        वर्षाऋतु समाप्त होते-होते सूर्य की प्रखर किरणें धरती पर पडने लगती हैं । तब शरद ऋतु का आरंभ होता है । वर्षाऋतु में निरंतर ठंडे वातावरण से हमारा शरीर मेल खाया होता है । शरद ऋतु का आरंभ होने पर गर्मी के बढने से स्वाभाविक रूप से पित्तदोष बढता है और पित्त रोग की बीमारियाँ ज्यादा होती है । शरद ऋतु मे सब्जियाँ ज्यादा बनती है किन्तु बारिश का पानी पी कर वे कृमि युक्त अवम नमक की मात्र उसमे बढ़ जाती है । जिससे वे विषैली बन जाती है इसलिए उन्हे खाने से भी बीमारी ज्यादा होती है । इसीलिए व्यंग्य से वैद्यों को रोगाणाम शारदी माता अर्थात (रोगियों की संख्या बढानेवाला) शरद ऋतु रोगो की माता ही है, ऐसा कहा गया है । इसलिए अगर यह शरद ऋतु अगर अच्छी तरह – सुखरूप – बिना कोई रोग के कोई व्यतीत करता है तो पूरा साल स्वस्थ ही गुजरेगा ऐसा माना जाता है । अतः जीवेम शरदः शतम्  ऐसा आशीर्वाद दिया जाता है ।


शरद ऋतु वातावरण 


आयुर्वेद के अनुसार शरद ऋतु का वातावरण और शरीर स्थिति :

        शरद्-ऋतु में बादल विरल हो जाते हैं, वे बहुत धवल स्वच्छ और सुन्दर होते हैं। चंद्रमा की किरणें अधिक प्रभावशाली, स्वच्छ और स्निग्ध हो जाती हैं और मन को आनन्द प्रदान करती हैं। नदियों, झीलों और तालाबों का जल सूर्यताप व चाँदनी के प्रभाव से स्वच्छ हो जाता है।  

                वनस्पतियों, औषधियों आदि में अम्ल रस की अधिकता पाई जाती है। वर्षा-ऋतु में शरीर को वर्षा और उसकी शीतलता सहन करने का अभ्यास हो जाता है। वर्षा के बाद शरद्-ऋतु में सूर्य अपने पूरे तेज  तथा गर्मी के साथ चमकता है। इस उष्णता के फलस्वरूप वर्षा ऋतु के दौरान शरीर में जमा हुआ पित्त दोष एकदम कुपित हो जाता है। इससे रक्त दूषित हो जाता है। परिणामस्वरूप पित्त और रक्त के रोग, बुखार, पेट की जलन, फोड़े-फुंसियाँ, त्वचा पर चकत्ते, गण्डमाला, खुजली आदि विकार अधिक उत्पन्न होते हैं। विसर्ग काल का मध्य होने से शरीर में बल की स्थिति मध्यम होती है ।


आयुर्वेद अनुसार शरद ऋतु दिनचर्या :

·     भूख लगने पर ही आहार ले और पूर्व में खाया हुआ भोजन पच जाने के बाद मात्रा-पूर्वक सेवन करना चाहिये ।

·     अच्छी तरह भूख लगने पर सम्यक मात्रा में ही खाना उपयोगी है ।

·     कुपित पित्त को शान्त करने के लिए घी सेवन हितकारी है । सब्जी – दल की जोंक मे तेल की जगह घी का इस्तेमाल करे । रात को सोते वक़्त पैरों में घी घिसना चाहिए ।

·     शरद ऋतु मे मधुर ( मीठे ), तिक्त ( कडवे ) और कषाय ( तूरे ) स्वाद का विशेष सेवन करना चाहिए ।

·     मीठे, हल्के, सुपाच्य, शीतल और तिक्त रस वाले खाद्य और पेय पदार्थ विशेष रूप से उपयोगी हैं।

·     अनाज मे शालि चावल, मूँग, गेहूँ, जौ, धान , सामा ( एक प्रकार का अनाज ) लेना चाहिए ।

·     दलहन में चने, तुअर , मुंग, मठ , मसूर, मटर लें सकते है ।

·     उबाला हुआ दूध, दही, मक्खन, घी, मलाई, श्रीखंड ( घर पर बना हुआ ) पाचन शक्ति अनुसार ले सकते है ।

·     सब्जियों में- गोभी, ककोड़ा, (खेखसा), परवल, गिल्की , ग्वारफली, गाजर, मक्के का भुट्टा , तुरई, चौलाई, लौकी, कद्दू, सहजने की फली, सूरन  (जमीकंद), आलू लेना चाइए ।

·     फलों में- अनार, आँवला सिंघाड़ा, मुनक्का और कमलगट्टा लाभकारी हैं।

आँवले को शक्कर के साथ खाना चाहिए।

·     काली द्राक्ष (मुनक्के), सौंफ एवं धनिया को मिलाकर  बनाया गया पेय गर्मी का शमन करता है !

·     ठंडाई के लिए तुलसी के बीज अथवा उशीर  डाला हुआ पानी, आमला शरबत आदि विकल्प भी इस ऋतु के लिए लाभदायक हैं ।

·     मिट्टी की मटकी में शरीर को आवश्यक खनिज मिलते हैं । यह पानी पित्तशामक होता है । मिट्टी से शरीर को आवश्यक खनिज  भी मिलते हैं ।

·     हंसोदक जल : इस ऋतु में जल को दिन के समय सूर्य की किरणों में तथा रात्रि को चंद्रमा की किरणों में रख कर प्रयोग में लाना चाहिए। इस ऋतु में जल अगस्त्य तारे के प्रभाव से पूरी तरह विष व अशुद्धि से रहित हो जाता है और सब दृष्टि से बहुत उपयोगी होता है, इसलिए अमृत के समान माना जाता है। पीने के अतिरिक्त स्नान और तैरने के लिए भी इसी जल का उपयोग करना हितकर है। आचार्य चरक ने इस जल को हंसोदक कहा है। 

हंसोदक जल 


·     इस ऋतु में खिलने वाले फूलों को आभूषणों के रूप में प्रयोग में लाना चाहिए। सुगंधित फूल पित्तशमन का कार्य करते हैं ।

·     वस्त्र सूती, ढीले तथा उजले/श्‍वेत रंग के होने चाहिए ।

·     ऋतु में पित्त का प्रकोप होकर जो बुखार आता है, उसमें एकाध उपवास रखकर धनिया पावडर, चंदन, वाला (खस) एवं सोंठ डालकर उबालकर ठंडा किया हुआ पानी पीना चाहिए । व्यर्थ जल्दबाजी के कारण बुखार उतारने की दवाओं का सेवन न करें अन्यथा पित्त अवम यकृत से संबन्धित नये-नये रोग होते ही रहेंगे। आजकल कई लोगों मे इस बात को होते हमने देखा है । इसके लिए आपके आयुर्वेद विशेषज्ञ से सलाह ले ।

·     शरद ऋतु में स्नान से पहले नियमित रूप से शरीर को नारियल तेल लगाने से त्वचा पर फोडे नहीं होते । गर्मी के कारण अधिक पसीना आने के विकार में भी संपूर्ण शरीर को नारियल तेल लगाना लाभदायक है ।

·     कुपित पित्त और दूषित रक्त को शान्त करने के लिए विरेचन (दस्तावर औषधि) का प्रयोग और रक्त-मोक्षण‘ (दूषित रक्त को निकालने) वाली चिकित्सा आयुर्वेद डॉक्टर की सलाह से करनी चाहिए।

 

शरद ऋतु मे निषेध बाते :

·     शरद ऋतु में अतितीक्ष्ण, अम्ल, उष्ण पदार्थ नहीं खाने चाहिए ।

·     ठूँस-ठूँस कर नहीं खाना चाहिए । भूख लगे बिना भोजन नहीं करना चाहिए।

·     बाजरा, मक्का, उड़द, तिल, सरसों, मट्ठा, इमली, कच्ची कैरी,  पुदीना,  सौंफ, मेथी, लहसुन, बैंगन, करेला, भिंडी, ककड़ी,  हींग, मूँगफली, काली मिर्च आदि शरद ऋतु मे त्याज्य होता है ।

·     तेज मादक द्रव्य, मदिरा, सॉफ्ट ड्रिंक्स, दही और लवण वाले खाद्य पदार्थ अधिक मात्रा में नहीं खाने चाहिए।

·     अधिक व्यायाम तथा सम्भोग भी हानिप्रद हैं।

·     फ्रीज अथवा कुलर का ठंडा पानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने से त्याज्य है ।

·     दिन में सोना या धूप में देर तक बैठना, रात में देर तक जागना ठीक नहीं होता। शरद ऋतु में हालाँकि धूप सेंकना अच्छा लगता है, किन्तु धूप में बहुत देर तक बैठना स्वास्थ्य के ठीक नहीं होता। 

·     इस मौसम में धूप, ओस और पूर्व की ओर से आने वाली हवाओं से बचना चाहिए।

 

शरद ऋतु के दौरान त्योहार का वैज्ञानिक महत्व :

·     इस ऋतु में पित्तदोष की शांति के लिए ही आयुर्वेद के शास्त्रकारों द्वारा खीर खाने, घी का हलवा खाने तथा श्राद्धकर्म करने का आयोजन किया गया है।

·     शरीर मे पित्त शमन के उद्देश्य से चन्द्रविहार, गरबा नृत्य तथा शरद पूर्णिमा के उत्सव के आयोजन का विधान है।

शरद पूर्णिमा 


·     नवरात्रि के दौरान रात्री जागरण से चंद्र की शीतलत से शरीर मे पीत दोष का संतुलन बना रहेता है । रात्री जागरण अच्छा है किन्तु रात्रिजागरण 12 बजे तक या उससे भी पहेले का ही माना जाना चाहिए । अधिक जागरण से और सुबह एवं दोपहर को सोने से त्रिदोष प्रकुपित होते हैं जिससे स्वास्थ्य बिगड़ता है।

·     श्राद्ध के दिनों में 16 दिन तक दूध, चावल, खीर का सेवन पित्तशामकहोता  है। 

·     हमारे दूरदर्शी ऋषि-मुनियों ने शरद पूनम जैसा त्यौहार भी इस ऋतु में विशेषकर स्वास्थ्य की दृष्टि से ही आयोजित किया है। शरद पूनम के दिन रात्रिजागरण, रात्रिभ्रमण, मनोरंजन आदि का उत्तम पित्तनाशक विहार के रूप में आयुर्वेद ने स्वीकार किया है।

·     शरदपूनम की शीतल रात्रि छत पर चन्द्रमा की किरणों में रखी हुई दूध-पोहे अथवा दूध-चावल की खीर सर्वप्रिय, पित्तशामक, शीतल एवं सात्त्विक आहार है।

·     शरद पूनम की रात्रि में ध्यान, भजन, सत्संग, कीर्तन, चन्द्रदर्शन आदि शारीरिक व मानसिक आरोग्यता के लिए अत्यंत लाभदायक है।

इस प्रकार अगर शरद ऋतु मे हमने आयुर्वेद के इन नियमों का पालन किया तो यकीनन इस ऋतु के दौरान होते रोगों से हम बच पाएंगे । और अगर हमारी शरद ऋतु अच्छे से बीत गयी तो “जीवेम शरदः शतम्” जरूर से सार्थक हो पाएगा । आप सभी को मेरी और से मंगल शुभकामनाए :जीवेत शरद: शतम ....!

- डॉ. जिगर गोर ( आयुर्वेद विशेषज्ञ )

श्री माधव स्मरणम आयुर्वेद क्लीनिक, 

भुज- कच्छ, गुजरात 


To read this article in English pls click : https://www.thelitthings.com/2020/10/sharad-ritucharya-healthy-ayurveda.html

Sunday, September 27, 2020

कोरोना की आयुर्वेद औषधियों का सेवन डॉक्टर की सलाह के बाद ही ले

 कोरोना की आयुर्वेद औषधियों का सेवन डॉक्टर की सलाह के बाद करे । Self Medication से आपको तकलीफ हो सकती है :

              कोरोना इन्फ़ैकशन को फैले हुए करीब करीब 8-9 महीने अब भारत मे होने आए है । COVID:19 इन्फ़ैकशन की वजह से पूरा विश्व एकजूट होकर लड़ रहा है । कई जगह कुछ कुछ काबू मे आया हुआ कोरोना , बहोत सारी जगह पर बेकाबू भी बन गया है । आयदिन नए नए हॉट स्पॉट बन रहे हैं । social media मे अब RIP सुनने पर दिल एक धड़कन चूक जाता है की अब किसके अपमृत्यु का समाचार सुनना पड़ेगा । चारो और एक डर का माहोल बन गया है । एक छुपे हुए डर के नीचे हरकोइ जी रहा है । साथ ही जीवन निर्वाह चलाने के लिए, अपने काम को लेकर लोग बाहर भी निकल रहे हैं । कुछ लोग बेखौफ होकर घूम रहे है तो कुछ लोग डर के मारे घर का आँगन भी नहीं देखते है ।

Covid19


              आयुर्वेद के द्वारा covid19 संक्रामण किस तरह काबू मे आ सके उसके लिए बहोत सारे उपाय शुरू से विशेषज्ञों ने बताए हैं । आयुष डिपार्टमेंट द्वारा भी यह चिकित्सा के निर्देशों का किस तरह पालन किया जाए उसके लिए मार्गदर्शिका भी जारी की गई है । आयुर्वेद से रोगप्रतिकरक शक्ति बढ़ाने पर कोरोना से बचा जा सकता है यह बात सामने आने पर के साथ ही social media से लेकर print media तक सब जगह आयुर्वेद के अलग अलग चिकित्सा और नुसख़ों का ज़ोर शोर से प्रचार हुआ है । इन दिनों मे आयुर्वेद के प्रति लोगों की श्रद्धा ओर ज्यादा प्रबल हुई है । बतौर आयुर्वेद चिकित्सक मैंने यह महसूस किया की ज्यादा से ज्यादा लोग आयुर्वेद के विभिन्न नुस्खे और चिकित्सा इन दिनों मे अपनाने लगे है ।  

              लेकिन डर एक ऐसी बात है जो हमे कोई भी हद तक जाने के लिए मजबूर कर देती है । और उसमे भी किसी virus से संक्रमित होकर उससे अप्राकृतिक मृत्यु पाना या अपने किसी नजदीकी स्वजन को गंवाना इस बात से भयावह और डरावना और क्या हो सकता है ? यही डर की वजह से लोगो ने आयुर्वेद के विभिन्न उपचारों को घर पर अपनाना शुरू कर दिया । अपनाने तक तो अच्छा ही था, लेकिन एक हद से ज्यादा ही उसका प्रयोग आजकल हो रहा है यह मालूम पड रहा है । social media पर तो हर कोई जैसे आयुर्वेद का डॉक्टर बन कर बैठा है । सभी लोग कही सुने – पढे हुए भिन्न भिन्न आयुर्वेद नुस्खों को फॉरवर्ड कराते हुए इनबॉक्स को भर दे रहे है ।

Ayurveda Medicine


              लोग कहेते-मानते है की आयुर्वेद दवाइया खाने से उनकी side effects नहीं होती है । मैंने मेरे Facebook Page पर और हमारी वैबसाइट पर और न जाने कितनी ही जगह पर यह बात की होगी की साइड इफैक्ट का आधार दवाइयोंको आप कैसे ले रहे हो इस पर रहेता है । आयुर्वेद की औषधियों का भी साइड इफैक्ट होता है अगर वो उसकी योगी मात्रा से ज्यादा या कम ली जाए या किसी qualified डॉक्टर से परामर्शके  बगैर ली जाए ।

              COVID19 के चलते लोक डाउन लगा और उसके बाद unlock के new normal के वातावरण मे एक नयी दिनचर्या लोगोने अपनाई । अब कोरोना के इन्फ़ैकशन से बचने के लिए लोगो ने ज्यादा से ज्यादा नुस्खो और उपचारों को अपनाना चालू किया ।

Ayush Kwath


              रोगप्रतीकारक शक्ति को बढ़ाने की मानो एक दौड़ ही शुरू हुई है । हल्दी, कालीमिर्च , तुलसी जैसी गर्म चिज़े इन्फ़ैकशन को काबू मे लाकर सर्दी कफ आदि को काबू मे कर सकती है ऐसा मार्गदर्शिका मे कहा गया था । इसके लिए लोग रसोई घर मे ही मिलने वाले काली मिर्च, अदरक – शुंठ चूर्ण, तुलसी आदि को लेने लगे हैं  । इसके चलते सभी गरम-तेज मसलों को उबालकर या खाने मे लेने के अलग अलग नुस्खे प्रचलित हो गए । लोगो ने यह एकदम ही गर्म गुणवाले औषधोंका सेवन खुद की प्रकृति समजे बिना ही चालू कर दिया । दिन मे दो – तीन बार यह गरम चीज़ें हररोज – महीनों तक बेहिसाब लेते रहेने से एसिडिटि , कोलयटिस , पेट का दर्द , सिरदर्द, उल्टी होना, बालों का जड़ना, त्वचा विकार जैसी कई सारी समस्या अब सामने आने लगी हैं । सौंठ के पाउडर को सूंघना और उसको मुंह मे रखकर खाने के नुस्खे से कई लोगों को चक्कर आना, सिरदर्द होना आदि दिक्कते भी होने लगी हैं । ज्यादा गरम चीजों के सेवन से कई महिलाओ को मासिकधर्म से जुड़ी समस्या ज्यादा बढ़ गई हुई भी हमारी OPD मे दिखाई दे रही है । हल्दी ने तो मानो सारे रिकॉर्ड ही ब्रेक कर दिये है । सारे साल मे हम जितनी हल्दी नई खाते हैं उससे चार  – पाँच गुनी ज्यादा हल्दी हम इन चंद महीनों मे खा गए हैं । और अभी भी उसकी डिमांड बरकरार है । थोड़े ही दिनों मे हल्दी का कालाबाज़ार न हो तो ही गरिमत है ।

Turmeric Milk


              हल्दी हो या तुलसी हो या सोंठ हो या और कोई वनस्पति तब ही औषधीय गुण देगी जब उसे कोई आयुर्वेद के जानकार qualified doctor द्वारा कही जाए ।  जब वो कोई डिग्रीधरक आयुर्वेदिक वैद्य द्वारा निर्देश की जाए तो उसके पीछे का logic सामान्य से काफी अलग रेहता है । हर किसी को गर्म औषधी समान रूप से गुण नहीं देती है  । औषधियों की मात्रा व्यक्ति की उम्र, वातावरण, प्रकृति , स्त्री-पुरुष आदि factors को ध्यान मे रखते हुए निर्देशित की जाती है । Social Media पर कहे सारे नुस्खे सही ढंग से सूचित किए है या नहीं यह भी कभी जानने की कोशिश ही नहीं की है  । उनकी प्रामाणिकता जाने बिना ही लोगोने वे नुस्खे अपना लिए । कुछ लोगो ने  तो मानो की पेट मे आगा ही लगा दी है । गर्म चिज़े इन्फ़ैकशन को काबू मे ला सकती है , लेकिन उनकी मात्रा हर एक के शरीर के हिसाब से अलग अलग होगी ना ! और फिर बिना परामर्श लिए उनको अपनाने से आए विपरीत परिणामो से परेशान होकर लोगो ने आयुर्वेद को कोसना चालू किया । इच्छित परिणाम नहीं मिलने की वजह से उनका आयुर्वेद के प्रति विश्वास डगमगाने लगा ।

गलत तरीके से औषधि लेने पर तकलीफ 


              सही कहूँ तो, लोगो को हजारो सालो से शाश्वत, सपूर्ण  विकसित और परिपूर्ण ऐसे आयुर्वेद विज्ञान पर भरोसा नहीं है । आयुर्वेद को अपनाने के पीछे उनकी श्र्द्धा और डर से कही आगे है उनका “blindly follow” करने की आदत ! आयुर्वेद का नाम आते ही आंखे बंद करके उन्हे लोग अपनाने लगते है । आजकल तो हर कोई तीसरा आदमी बिना किसी अनुभव लिए social media पर डॉक्टर बन बैठा है, वे आयदिन नए नए नुस्खे और उपचार आयुर्वेद के नाम पर लोगो पर थोप रहे हैं ।  लोगो को आयुर्वेद उपचारो से ठीक होना है , किन्तु उसके लिए  social media मे viral हो रहे आयुर्वेद के नुस्खे ही अपनाने है । आयुर्वेद के डॉक्टर को परामर्श की फीस ना देनी पड़े उसके चक्कर मे लोगो ने अपने आप दवाइयाँ लेना शुरू कर दिया है । उनको अपने स्वास्थ्य के लिए प्रकृति का परीक्षण करवाके आयुर्वेद के डॉक्टर से परामर्श लेकर आयुर्वेद की औषधी खाने मे interest नहीं है । आजकल तो कुछ रुग्ण ऐसे भी हैं की जो सिर्फ डॉक्टर से सलाह लेने लिए या किसी बीमारी के सुजाव के लिए फोन पर या whatsapp पर मेसेज से बात करते है, बस बाकी का काम तो अभी भी मेडिकल स्टोर से ही हो जाता है ।

              काफी मेडिकल स्टोर वालों ने भी मौके का फाइदा उठाकर आयुर्वेद दवाइयाँ लोगों को बेचे जा रहे हैं और उसकी मनचाहे dose भी अपने आप बता दे रहे है । औषधि अगर उसकी मात्रा से ली जाए तब ही तो अपना सही असर दिखाएगी । जो चीजों की आदत शरीर को इतने समय तक बिलकुल नहीं थी उनकी अचानक से बहोत सारी मात्रा शरीर मे जाएगी तो भी  शरीर उसको  कैसे adjust कर पाएगा । वो औषध चाहे कितनी भी अच्छी हो उसका प्रयोग धीरे धीरे समजदारी से – सलाह लेकर करना ही जरूरी है ।

Yoga


              वैसी ही बात योग- प्राणायाम और कसरत के बारे मे हुई है । योग यह आयुर्वेद का अभिन्न अंग है । आजकल तो टीवी पर / social media पर कितने सारे योगगुरु बन बैठे है और खुदकी भिन्न भिन्न योग की पद्धतियाँ बना कर chocolate की तरह बेच रहे है । और उनके शिष्य  भी उनसे अभिभूत होकर हजारो रुपए देकर उन्हे follow भी कर रहे हैं । वैसे योग तो एक विज्ञान है, उसकी पद्धति और मुख्य विचारधारा एक ही है, फिर उसकी अलग अलग पद्धतियाँ कैसे अस्तित्व मे आ गयी ये तो एक डिबेट का विषय रहेगा । लेकिन यह बात का मैं खुद साक्षी हूँ की, इतने समय तक सरल ढंग से किए जाने वाले योग क्रिया को बार बार गला फाड़ कर कहे जाने पर भी काफी रुग्ण ने योग प्राणायाम कतह ही नहीं अपनाए है । और अब अचानक उनका अतियोग होने लगा है । कोई भी कसरत या योग को करने से पहेले शूक्ष्म क्रिया करनी पड़ती है । कसरत और योग-प्राणायाम को अपनाने की एक सही विधि और नियम होते हैं ।  शरीर के स्नायु जो अभी तक कभी भी योग का “य” भी नहीं देखा है उन्हे अचानक से दिन के 1-2 घंटे कसरत करवाने से क्या नतीजा आयेगा ? वैसे भी सभी योग या प्राणायाम या कसरत सभी के लिए नहीं बने है । यहा तो हररोज कौन किस से ज्यादा संख्या मे योग कर पायेगा इसकी स्पर्धा हो रही है । लेकिन इसके नियमों को जाने बिना ही बेढंग योग या कसरत या प्राणायाम करने से उन्हे काफी परेशानियाँ भी दिख रहीं है । और नतीजो का दोष दिया जाता है पूरे system को !



              कई बार तो ऐसा भी हुआ है की जब इस तरह से गलत तरीके या गलत नुस्खों को ना अपनाने का अनुरोध हम आयुर्वेद डॉक्टर द्वरा किया गया तो लोगो ने उल्टा डॉक्टर को ही दोषित ठहराया है । और कहा की, शायद डॉक्टर ज्यादा महेंगी दवाई देना चाहते है इसलिए वो हमारे नुस्खों और औषधियों का विरोध कर रहे है ....!

              खुद की नासमजी के कारण अपनाए हुए नुस्खो से मिले विपरित  परिणाम से आयुर्वेद विज्ञान कतह ही खराब या बिन-असरदार नहीं हो जाता है । यह वो व्यक्ति की गैरजिम्मेदारी थी जिससे उसे हानी हुई है । इसमे पूरी system खराब नहीं होती है ये खास समज़े ।

Ayurveda Medcine


             आईए कुछ खास बातों का ध्यान रखें:


· हमेशा योग्य आयुर्वेद चिकित्सकों से सलाह लेनी चाहिए। अपनी  हररोज की समस्या के लिए उनसे सलाह लें।

· आयुर्वेद फिजिशियन आपका फैमिली फिजिशियन हो सकता है। आपकी छोटी मोटी दिक्कतों के लिए उनसे मशवरा लें।

· आयुर्वेद विशेषज्ञों की राय के बिना सोशल मीडिया के किसी भी उपाय का पालन न करें।

· आयुर्वेद डॉक्टरों  की सलाह और प्रेस्क्रिप्शन के बाद ही कोई दवा लेनी होगी।

· आयुर्वेद की दवाओं के साइड इफेक्ट्स होते हैं, अतः ख़ुद से जाकर मेडिकल स्टोर से दवाई लेकर स्व-चिकित्सा करना बंद करें।

· घरेलू उपचार आयुर्वेद का हिस्सा हैं, यह कुछ हद तक आपकी राहत दे सकता है लेकिन वे पूर्ण रूप से आयुर्वेद उपचार नहीं हैं। सम्पूर्ण आयुर्वेद चिकित्सा के लिए आयुर्वेद विशेषज्ञ से ही औषध ले।

· आपके शरीर की प्रकृति को जाने बिना किसी भी घरेलू उपचार का सेवन न करें।

· मेडिकल स्टोर्स से सीधे दवाइयाँ खरीदना आपको स्वास्थ्य संकट में डाल सकता है।

· योग और व्यायाम दैनिक दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। लेकिन प्रारंभिक चरण में, विशेषज्ञों की सलाह से ही इसे करना चाहिए।

· किसी भी योग आसन या एक्सर्साइज़ को उसके नियम और व्यक्ति की शरीर की आवश्यकता और प्रकृति के अनुसार किया जाना चाहिए।

· आयुर्वेद एक विशाल विज्ञान है। अगर किसी को मनोवांछित परिणाम नहीं मिला है तो उसका मतलब यह नहीं है कि संपूर्ण विज्ञान अच्छा नहीं है। एक दूसरी राय भी लेनी चाहिए।

· ऐसी कोई एक ही "जादुई जड़ी बूटी या उपाय" दुनिया में नहीं है। आयुर्वेद विशेषज्ञों की सलाह के बिना अत्यधिक खुराक में एक विशेष दवा का सेवन न करें।

              गहेने बनाए के लिए क्या आप लुहार के पास कभी गए हो ? गहेने बनाए के लिए तो हम सुनार के पास ही जाते हैं  ना ! फिर हमारे अमूल्य स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए ज्यों त्यों नुस्खे अपनकर क्यूँ गलत दिशा पकड़ रहे हैं ? सही दिशा का चयन करे, आप जरूर से अपनी मंज़िल को पाएंगे ।

              Master Stroke: If your doctor prescribe you medication without first asking about your diet, sleep – exercise routine, water consumption, whether you have any structural issue or stress in life,,,,Then you  haven’t got a doctor. What you have is drug dealer …!


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https://www.thelitthings.com/2020/09/seek-advice-of-ayurveda-experts-for.html